(April 2015 and December 2015)
1.Award Ceremony Organised by Hindusthan Samachar, U.P
प्रकृति ने ना जाने किन मापकों के आधार पर सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्थाओं का संयोजन कर डाला है। विचारों में विभिन्नता के चलते लडते-झगडते,टूटते-बसते रिश्तों की डोर अनायास ही सबको बांधे एकत्रित किए इन तथाकथित व्यवस्थाओं की बलिवेदी पर स्वत्व का अंत आए दिन करती रहती है। इन बंधनों से बंधा सामान्य मनुष्य जीवन भर संघर्ष करता और जीवन को मात्र संघर्ष ही मानकर जीवन जीने की अपेक्षा जीवन काटने में लगा है। समय-समय पर परिवर्तन की लहर ने इसके मूल को स्वरूप को नष्टकर खिचडी व्यवस्था की स्थिति को जन्मा है। जिसका सीधा प्रभाव संस्कृति पर परिलक्षित होती है। वसुधैव कुटुम्बकम् की व्यवस्था अब स्थापित कर सक पाना एक चुनौती बन गई है। मनुष्य परिवार के साथ एडजस्ट नहीं कर पा रहा है। लोग शौकिया तौर पर कुत्ते-बिल्ली-तोते-मछलियों को पाल सक पा रहे हैं परन्तु,अपने वयोवृद्ध माता-पिता को नहीं। वृद्धाश्रम की बलवती होती संस्कृति भारत की अस्मिता को नेस्तनाबूत कर देगी।
सावधान !