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शिक्षक समाज के लिए कर्तव्यबोध है फ़िल्म “सुपर30”
समाज का वह वर्ग जो कि संघर्षमय जीवन बिताता दो जून की रोटी को भी तरसता रहता है, को सुपर ३० में शुमार करने की योजना बनाने वाला शिक्षक अपने उन विद्यार्थियों के आत्मविश्वास को सातवें आसमान पर पहुँचाकर उन्हें विश्व विजय करने हेतु तैयार करता है।यह निश्चित ही गर्व का विषय है। “गुरु कुम्हार सिख कुम्भ है, गढि-गढि काढ़े खोट” दोहा इस पूरी फ़िल्म में चित्रित हो रहा है। आचार्य चाणक्य का ध्येय वाक्य “ शिक्षक सामान्य नहीं होता, प्रलय एवं निर्माण उसकी गोद में पलते है” के आस-पास ही यह फ़िल्म घूम रही है। आचार्य चाणक्य रूपी श्री आनंद कुमार हर अक्षम-ग़रीब चंद्रगुप्त को चक्रवर्ती सम्राट बनाने हित कृतसंकल्पित हैं। यही भारतीय शिक्षक का प्रमुख गरिमामय स्वरूप है। हर पहलू में पढ़ाई को देखना, प्रकृति के प्रत्येक क्रिया में विज्ञान और गणित देखना तथा उसी के अनुरूप विचार कर उसका प्रतिपादन करना व्यावहारिक दृष्टि से एक सहज परंतु प्रभावी शिक्षण प्रणाली को दर्शाता है। टीचिंग प्रोफ़ेशन वाले शिक्षकों को मार्गदर्शित करती यह फ़िल्म अपने आप में पूर्ण है। पूरी फ़िल्म आठ (८) भागों में बॉटी जा सकती है-
१. निज हित में स्वयं का जीवन संघर्ष-
२. भौतिकवाद/ विलासिता की और अग्रसर-
३. पुन: आत्ममंथन/ वैराग्य/ दृढ़निश्चय/ संकल्प-
४. सफल संपादन हेतु कृतसंकल्पित-
५. समाज हित में स्वयं का पुन: जीवन संघर्ष-
६. भौतिकवाद विलासिता का त्याग-
७. संकल्प को सिद्ध करने हेतु तपस्या/ बलिदान-
८. परम् वैभव की प्राप्ति-
सभी अध्यापक (शिक्षक) सुपर-३० फ़िल्म अवश्य देखें। अन्त्योदय हेतु राष्ट्र एवं समाज में पुनर्जागरण हेतु, राष्ट्र पुनर्निर्माण हेतु अपने कर्तव्यों का अनुपालन करें । आचार्य चाणक्य हैं- आचार्य चाणक्य रहें। “सुपर-३०” को शुभकामनाएँ।
-डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी
समूह निदेशक- मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूशन्स, इंदौर
Punit.hyd@gmail.com
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