स्वच्छता हमारी परिपाटी है इसे न खोएँ- डॉ. पुनीत द्विवेदी
स्वच्छता से ही स्वस्थ भारत एवं समाज की परिकल्पना की जा सकती है।अर्थात "स्वच्छ भारत से स्वस्थ भारत संभव है"। अत: "स्वच्छ भारत अभियान" सबसे महत्वाकांक्षी अभियान होना चाहिए। ग्रामीण जीवन जीने की कला को यदि देखें या फिर अपने बचपन के उन दिनों का स्मरण करें जब प्रात: काल माँ या दादी पहले-पहल झाड़ू उठाकर पूरे घर की विधिवत सफ़ाई किया करते थे, पिता जी या दादा जी ख़रहरे से पूरे दुआर (द्वार) की सफ़ाई किया करते थे उसके पश्चात् स्नान, ध्यान, भोजन बनाने और खाने का कार्य होता था।
स्मरण करें, जब प्राथमिक पाठशाला में प्रात:काल की प्रार्थना के पश्चात श्रमदान का कार्य किया जाता था, जिसमें अपने विद्यालय के आस-पास के क्षेत्रों की प्रतिदिन सफाई की जाती थी। यही तो है भारतीय संस्कृति। वर्तमान पाश्चात्य वाताकरण के दुष्प्रभाव के चलते इन व्यवस्थाओं में परिवर्तन आया है और एक अव्यवस्थित, भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल, अव्यवहारिक व्यवस्था जो कि हमारे दैनिक क्रियाकलापों के दोषपूर्ण विभत्स स्वरूप को लेकर प्रकट हुयी है, के हम आदी हो गए है।
भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी उसी प्राचीन विश्वगुरु भारत की परिकल्पना को मूर्त रूप देना चाहते हैं जो हमारे अपने संस्कृति और सभ्यता के अनुसार हो और हमें हमारे पूर्वजों से परिपाटी के रूप में प्राप्त हुआ हो।
आईए, स्वच्छता के इस मंत्र को जन जन तक पहुँचाएं। भारत वर्ष को स्वच्छ भारत बनाकर परम् वैभव को प्राप्त करें। जय विश्वगुरु भारत।स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत।
(लेखक "स्वच्छ भारत अभियान" (भारत के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर ) के ब्रांड अम्बेसडर हैं।)
#SwachhIndore #SwachhBharat #SBM-#Urban #MoUD #SwachhataSurvekshan-2018
#SwachhIndore
स्वच्छता से ही स्वस्थ भारत एवं समाज की परिकल्पना की जा सकती है।अर्थात "स्वच्छ भारत से स्वस्थ भारत संभव है"। अत: "स्वच्छ भारत अभियान" सबसे महत्वाकांक्षी अभियान होना चाहिए। ग्रामीण जीवन जीने की कला को यदि देखें या फिर अपने बचपन के उन दिनों का स्मरण करें जब प्रात: काल माँ या दादी पहले-पहल झाड़ू उठाकर पूरे घर की विधिवत सफ़ाई किया करते थे, पिता जी या दादा जी ख़रहरे से पूरे दुआर (द्वार) की सफ़ाई किया करते थे उसके पश्चात् स्नान, ध्यान, भोजन बनाने और खाने का कार्य होता था।
स्मरण करें, जब प्राथमिक पाठशाला में प्रात:काल की प्रार्थना के पश्चात श्रमदान का कार्य किया जाता था, जिसमें अपने विद्यालय के आस-पास के क्षेत्रों की प्रतिदिन सफाई की जाती थी। यही तो है भारतीय संस्कृति। वर्तमान पाश्चात्य वाताकरण के दुष्प्रभाव के चलते इन व्यवस्थाओं में परिवर्तन आया है और एक अव्यवस्थित, भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल, अव्यवहारिक व्यवस्था जो कि हमारे दैनिक क्रियाकलापों के दोषपूर्ण विभत्स स्वरूप को लेकर प्रकट हुयी है, के हम आदी हो गए है।
भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी उसी प्राचीन विश्वगुरु भारत की परिकल्पना को मूर्त रूप देना चाहते हैं जो हमारे अपने संस्कृति और सभ्यता के अनुसार हो और हमें हमारे पूर्वजों से परिपाटी के रूप में प्राप्त हुआ हो।
आईए, स्वच्छता के इस मंत्र को जन जन तक पहुँचाएं। भारत वर्ष को स्वच्छ भारत बनाकर परम् वैभव को प्राप्त करें। जय विश्वगुरु भारत।स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत।
(लेखक "स्वच्छ भारत अभियान" (भारत के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर ) के ब्रांड अम्बेसडर हैं।)
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