भोगवादिता ने मानव संवेदनाओं की हत्या कर दी है- डॉ. पुनीत द्विवेदी
Thursday, 29 April 2021
भोगवादिता ने मानव संवेदनाओं की हत्या कर दी है- डॉ. पुनीत द्विवेदी
Wednesday, 28 April 2021
महामारी प्रबंधन हित अनवरत प्रयास वर्तमान समय की माँग- डॉ० पुनीत द्विवेदी
महामारी प्रबंधन हित अनवरत प्रयास वर्तमान समय की माँग- डॉ० पुनीत द्विवेदी
• महामारी प्रबंधन विषय के रूप में पढ़ाया जाये।
• लगभग 100 वर्षों में महामारी का आगमन होता है जो विनाशक होता है।
• स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं को मज़बूत बनाने का लक्ष्य साधना आवश्यक।
प्रबंधन व्यवस्थित जीवन का एक बड़ा ही महत्वपूर्ण अंग है। शारीरिक संरचना के प्रबंधन से लेकर जीवन की दिनचर्या तक सब-कुछ प्रबंधन पर ही निर्भर करता है। देखा गया है कि आपदा प्रबंधन पर सरकार का ध्यान रहता है परंतु महामारी प्रबंधन पर कोई महत्वपूर्ण ज़ोर नहीं दिया गया है और इसे आपदा प्रबंधन का ही हिस्सा मान लिया गया है। जबकि महामारी प्रबंधन एक अनवरत प्रयास के रूप में अपेक्षित है।
ज्ञातव्य है कि महामारी एक निश्चित अंतराल पर प्रकट होती है और कुछ वर्षों तक जिसका प्रभाव देखने को मिलता है। व्यवस्था यह होनी चाहिये कि अध्ययन करके, जैसे मौसम का पूर्वानुमान लगाया जाता है; ठीक वैसे ही महामारी के पूर्वानुमान से संबंधित शोध एवं रणनीति पर काम करना चाहिये। मूलतः महामारी स्वास्थ्य से संबंधित होती है। अत: स्वास्थ्य सुविधाओं पर समुचित राशि व्यय कर स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत सुविधाओं को मज़बूत बनाने का लक्ष्य रखा जाना चाहिये। जिससे कि संक्रमण पर रोक लगाकर होने वाली मृत्यु की संख्या को कम किया जा सके जिससे अस्थिरता का वातावरण अथवा मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात ना बनें।
अध्ययन के द्वारा पूर्व की कुछ बड़ी महामारियों ने देश-विदेश और समाज पर जो प्रभाव डाला है वह दृष्टांत के रूप में रणनीति बनाने में सहायक सिद्ध हो सकती है। महामारी का यदि इतिहास देखें तो यह देखा गया है कि दुनिया में हर 100 साल पर 'महामारी' का प्रकोप हुआ है। वर्ष 1720 में दुनिया में द ग्रेट प्लेग ऑफ़ मार्सेल फैला था।जिसमें लगभग 1 लाख लोग काल के गाल में समाहित हो गये थे। पुन: 100 वर्ष बाद सन् 1820 में एशियाई देशों में हैजा का प्रकोप रहा। इस महामारी में भी लगभग एक लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इसी क्रम में सन् 1918 से 1920 में दुनिया ने स्पेनिश फ्लू के क़हर को झेला। इस बीमारी ने उस समय लगभग 5 करोड़ लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। और अब फिर 100 साल बाद दुनिया पर आई कोरोना की तबाही, जिसकी वजह से लगभग पूरी दुनिया में लॉक डाउन है और वर्ष 2020-21 में हम इसके दुष्परिणाम देख रहे हैं। अर्थात् 100 वर्षों में एक बार महामारी का आना लगभग तय है और इसके अनुरूप रणनीति बनाना वर्तमान एवं आगामी सरकारों का कर्तव्य है।
ध्यान रहे, मानव संसाधन सबसे बड़ी पूँजी है। भारत की बड़ी जनसंख्या भारत पर भार नहीं एक अवसर प्रदान करती है। मानव संसाधन का सही उपयोग राष्ट्र पुनर्निर्माण के लिये अत्यावश्यक है। अकुशल प्रबंधन के चलते देश की नींव कमजोर हो रही है जिसपर देश का भविष्य टिका हुआ है। आवश्यकता है वैचारिक आन्दोलनों का। जो विकास के मार्ग को प्रशस्त करे ना कि विकास में बाधक बनें। समाज के सभी वर्गों का एकजुट होकर राष्ट्र पुनर्निर्माण के कार्य में स्वयं को लगाने का लक्ष्य होना चाहिये। महामारी के समय, महामारी के पश्चात बिगड़े आर्थिक हालात को सुधारने का ज़िम्मा मात्र सरकारों का नहीं अपितु समस्त नागरिकों का भी है।
‘उत्पत्ति के साथ नाश और विकास के साथ ह्रास’ प्रकृति का नियम है। प्राकृतिक संसाधनों का अविवेक पूर्ण विदोहन भी महामारी को न्योता देता है। अत: औद्योगीकरण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का भाव भी मन में रहे। पंचभूतों के संरक्षण से ही मानव सभ्यता और प्राणी मात्र का कल्याण संभव है। हम नहीं कर पा रहे हैं अत: प्रकृति को स्वयं बैलेंस करना पड़ रहा है, जो भयावह है और इसके कारक हम स्वयं ही हैं।
(लेखक डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स, इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक के रूप में कार्यरत हैं)
मर्यादित राष्ट्रमंगल भाव को लोकमंगल हित जनमानस तक पहुँचाते श्रीराम- डॉ. पुनीत द्विवेदी
महामारी का तांडव: ख़ुशमिज़ाज होना ही बेहतर इलाज- डॉ. पुनीत द्विवेदी
- म्यूज़िक सुनना, मंत्रोच्चार करने से भी स्ट्रेस लेवल कम किया जा सकता है।
- नकारात्मक खबरों एवं अफ़वाहों से दूरी बनायें।
- स्वयं को व्यस्त रखने के लिये पुस्तकें पढ़ें, गीत, कविता कहानी लिखें, पेंटिंग करें।
- कोविड के लिये सुझाई गई दवाओं का सेवन करते रहें।
‘कैरियर हो या कोविड’ सकारात्मकता ही जीतती है- डॉ. पुनीत द्विवेदी
महामारी के इस संकटकाल में प्रबल होती देश विरोधी ताक़तों से सावधान- डॉ. पुनीत द्विवेदी
हमारे लिये महत्वपूर्ण राष्ट्र होना चाहिये। संकटकाल में जिस प्रकार वाह्य विदेशी ताकतों के साथ-साथ आंतरिक कलहकारी शक्तियॉ आपदा को अवसर की समझ में सक्रिय हुयी हैं उससे देश की प्रतिरोधक क्षमता और कमजोर होगी। यह समय ऐसा है कि जब आपसी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ‘राष्ट्रनीति’ पर काम करना चाहिये। वैश्विक महामारी कोरोना के दुष्प्रभाव को कम करने के लिये सकारात्मक ऊर्जा के साथ टीम वर्क पर ध्यान देना आवश्यक है। इसमें सरकार और विपक्ष दोनों का समान उत्तरदायित्व बनता है। आपदा प्रबंधन हित पक्ष-विपक्ष अन्य मोर्चों को एकसाथ एकजुट होकर राष्ट्र की संप्रभुता का संरक्षण करना होता है। जनता की रक्षा हित संसाधनों की उपलब्धता पर सभी दलों का समान ध्यान होना चाहिये। इज़रायल जैसे देशों का अद्भुत उदाहरण मिलता है , जहॉ कोरोना महामारी से देश की रक्षा करने के लिये सरकार और विपक्ष दोनों का एकजुट होकर निर्णय लेना, जिससे कि आज इज़रायल ‘मास्क फ़्री कंट्री’ के रूप में जाना जाने लगा है।
भारत केन्द्र और राज्य की राजनीति के साथ एक सशक्त लोकतंत्र के रूप में पूरे विश्व में जाना-पहचाना जाता है। इस महान संप्रभु राष्ट्र ने विश्व समुदाय को सदा प्रेरित किया है और आवश्यकता पड़ने पर पालन-पोषण भी किया है। परंतु वैश्विक नीतियों का प्रभाव या दुष्प्रभाव कहें या सशक्त नेतृत्व की कमी के कारण पूर्व के लगभग ७ दशकों तक भारत उपेक्षित रहा। वर्तमान नेतृत्व ने उपलब्ध संसाधनों के समुचित उपयोग, नई नवाचार की नीतियों, कुशल एवं प्रभावी सामरिक दृष्टिकोण एवं विदेश नीति के माध्यम से कम समय में देश को और अधिक सशक्त किया है। भारत के आधारभूत संरचना का चहुंमुखी विकास विगत ५-६ वर्षों में तेज़ी से बढ़ता हुआ दिखा है।नोटबंदी में विदेशी शत्रुओं के ख़ज़ाने ख़ाली किये हैं, तथाकथित NGOs पर कसी नकेल ने भारत में आतंकवादी गतिविधियों को प्रायोजित करने वाले स्रोतों को बंद किया है, धारा ३७०और नागरिकता क़ानून ने क्रमश: कश्मीर की समस्या का समाधान किया है एवं बांग्लादेशी घुसपैठ के मंसूबों पर पानी फेर दिया है, कश्मीर के विस्थापितों का एक लंबी प्रतीक्षा के पश्चात घर वापसी हुयी है,वहीं NRC ने ग़ैर भारतीय नागरिकों पर सिकंजा कसा है। यह भी देखा गया है कि पड़ोसी दुश्मन को भी समय-समय पर अब सबक़ सिखा ही दिया जाता है; कभी सर्जिकल अटैक से तो कभी डोकलाम के मुद्दे पर।
वास्तव में भारत अब पहले का वह दब्बू देश नहीं रहा जो किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर मात्र सहभागिता की दृष्टि से देखा जाता था जिसके मत, विचार और विषय का कोई महत्व नहीं होता था और ना ही कोई देश महत्व देना चाहता था। भारत मात्र एक मार्केट था जहॉ सबको व्यापार करना था और भारत को दबा कर रखना था। वर्तमान महामारी के प्रथम चरण में भारतीय केन्द्रीय सरकार के लॉकडाऊन का असर कोरोना पर भारत की एक बहुत बड़ी जीत के रूप में विश्व समुदाय ने माना था और भारत की वाहवाही हुयी थी। स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की कमी भारत जैसे विकासशील देशों में प्राय: सामान्य बात है। परंतु , भारत की दूरदर्शिता कहें या नेतृत्व की कुशलता; लॉकडाऊन की अवधि में स्वास्थ्य संबंधी उन व्यवस्थाओं का विकास अत्यंत ही द्रुतगति हुआ; जिसके बारे में सोच सक पाना भी मुश्किल था। चाहें वो वेंटिलेटर्स का निर्माण हो या मॉस्क और सेनेटाईजर्स, दवाओं या पी.पी.ई किट्स। भारत ने पूरे आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भर भारत की और कदम बढ़ाना प्रारंभ कर दिया था। चुनौतियाँ आती गईं, समाधान होते गये, भारत रूका नहीं चलता रहा, बढ़ता रहा। कोरोना रोकथाम संबंधी केन्द्र की नीतियों का सभी राज्यों ने पालन किया और जिसका परिणाम सकारात्मक रहा। हमें कम हानि हुयी।
किसी भी देश की रीढ़ उस देश की अर्थव्यवस्था होती है जो कृषि, उद्योग, व्यापार, वाणिज्य, सेवाओं आदि पर निर्भर करती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय लॉकडाऊन अर्थव्यवस्था के लिये घातक सिद्ध होती, क्योंकि पिछली बार के नुक़सान की भरपाई अभी तक हुयी नहीं कि कोरोना महामारी का दूसरा विनाशक दौर आ पहुँचा।अब ज़िम्मेदारी राज्यों की थी। भारत ही क्या विश्व के सबसे ताकतवर देशों की भी अर्थव्यवस्था, चिकित्सा व्यवस्था, शासन- प्रशासनिक व्यवस्थाएं सब चरमरा गई हैं। ध्यान रहे यह एक वैश्विक महामारी है जो वैश्विक समस्या है। इसके निदान हेतु सबका सहयोग नितांत आवश्यक है। संकट की इस घड़ी में अपने नागरिकों एवं विश्व समुदाय की रक्षा के लिये भारतीय वैज्ञानिकों ने वैक्सीन पर शोध कर सबसे कम मूल्य में वैक्सीन बनाकर विश्व समुदाय को अर्पित किया।‘वसुधैव कुटुम्बकम’ हमारी विशेषता है। आज समूचा विश्व भारत की तरफ़ आशा भरी निगाहों से देख रहा है। सबको पता है भारत सेवक है और सेवा करेगा। क्योंकि सेवा हमारी संस्कृति है।
विडंबना है, देश की आंतरिक सुरक्षा जो कि ‘शहरी नक्सलवाद’ से प्रभावित है। संकट के इस काल में देश के साथ, देश के लिये खड़े होने की अपेक्षा कुछ देश विरोधी आंतरिक ताक़तें देश को कमजोर करने में लगीं हैं। चीन समर्थित वामपंथ इस समय देश में असुरक्षा एवं अस्थिरता का माहौल बनाने से नहीं चूक रहा। ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा ध्यान वर्तमान समय में देश-समाज और हमारे लोगों की सुरक्षा करने का है। इस समय एकजुट होकर सरकार- शासन- प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जनसेवा करने का है।मानव सेवा ही माधव सेवा है। ध्यान रहे, हमें सरकार को कोसने के अन्य कई अवसर मिलेंगे अगर हम जीवित बचे रहे तो।
[ लेखक डॉ पुनीत कुमार द्विवेदी (शिक्षाविद्) मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स, इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक की भूमिका में कार्यरत हैं]