Thursday, 29 April 2021

भोगवादिता ने मानव संवेदनाओं की हत्या कर दी है- डॉ. पुनीत द्विवेदी

 भोगवादिता ने मानव संवेदनाओं की हत्या कर दी है- डॉ. पुनीत द्विवेदी 



- सेवाभाव का अभाव अस्पताल बने व्यापार के अड्डे।
- मानवता को शर्मसार कर तार-तार करती घटनाओं से भरे पड़े हैं समाचार पत्र।
- लाशों के व्यापार से आहत भारतीय समाज।
- असहायों से अनैतिक रूप से ऐंठे जा रहे हैं रूपये। 

भारतीय संस्कृति सभी छोटे-बड़े मत-संप्रदायों को अपने में समाहित कर उनका पालन-पोषण एवं संवर्द्धन करती आयी है। वसुधैव कुटुम्बकम् का भाव रखने वाला यह देश कब भोगवादी विचारों की ओर अग्रसर हो गया यह पता ही नहीं चला। वर्तमान समाज में  “वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिये मरे” का भाव लुप्त होता जा रहा है और ‘वही पशु प्रवृत्ति है जो आप-आप ही चरे’ का भाव पूरे चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मानव रूपी दानवों के बीच में रह रहे हैं हम लोग। विडंबना है कि भारत से चील-गिद्धों की जो प्रजाति विलुप्त होती जा रही है वो अब मानव शरीर में अपने उन्हीं संस्कारों के साथ अवतरित होने लगी है। 

कोरोना महामारी के इस संकटकाल में मनुष्य रूपी यह नरभक्षी गिद्ध-चील-कौवों की फ़ौज अपने स्वार्थ सिद्धि में लगी हुयी है। भारत की संस्कृति में कभी लाशों की व्यापार प्रचलित नहीं रहा है। परंतु आज के इस परिप्रेक्ष्य में प्रत्येक अस्पताल से लेकर मुक्तिधाम तक लोलुप भोगवादिता ने लाश पर पैसे कमा लेने का जो व्यापार शुरु किया है, वह अत्यंत पीड़ादायक है। इस मेडिकल आपातकाल के दौर में अस्पताल में बेड दिलाने से लेकर दवा-इंजेक्शन, आक्सीजन, एंबुलेंस एवं शववाहन आदि की कालाबाज़ारी ने मानवता को शर्मसार किया है। दिल्ली एम्स का चिकित्सक रेमडेशिवेर इंजेक्शन की कालाबाज़ारी करता हुआ धरा गया। इससे पहले भी लगभग रोज़ किसी ना किसी हेल्थकेयर से जुड़े व्यक्ति का नाम किसी ना किसी अपमानजनक कालाबाज़ारी के कृत्य से जुड़ा आ ही रहा है। समाचार पत्र, न्यूज़ चैनल चीख-चीख कर बता रहे हैं। 

मनुष्य का दैत्य स्वरूप अब दीखने लगा है। अब यह आभास होने लगा है कि पैसा कुछ भी करा सकता है। किसी की जान का सौदा भी, और किसी की लाश का सौदा भी। मरघट तक पहुँचाने वाले शववाहन, दाह करने वाले संस्कारी भी मुख्य रूप से लाशों के व्यापार में लग गये हैं। अस्पतालों की लूट ने धरती पर देवता के स्वरूप माने जाने वाले ‘चिकित्सकों’ की भूमिका पर प्रश्नचिह्व लगा दिया है। 

आवश्यकता है, एक ऐसे क़ानून की जो सजा दिला सक पाये ऐसे कुकृत्यों में लिप्त सफ़ेदपोश चीलों को। ताकि किसी असहाय की मजबूरी का फ़ायदा कोई चालबाज़ ना उठा पाये।आवश्यकता है उस नैतिक शिक्षा का, जो जीवों पर दया करने का पाठ पढ़ाया करती थी। सहकारिता के भाव को जगाती थी। सब कुछ व्यापार ही नहीं होता है कुछ प्यार भी और व्यवहार भी होता है। लाशों के साथ यह व्यापार मनुष्यत्व को कठघरे में खड़ा कर रही है। अरे गिद्धों !  कुछ तो सेवा का भाव रखो। भगवान तुम्हें कभी माफ़ नहीं करेगा। 

[ ✍️ डॉ.पुनीत कुमार द्विवेदी (शिक्षाविद) मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक की भूमिका में कार्यरत हैं।]



Wednesday, 28 April 2021

महामारी प्रबंधन हित अनवरत प्रयास वर्तमान समय की माँग- डॉ० पुनीत द्विवेदी

                           महामारी प्रबंधन हित अनवरत प्रयास वर्तमान समय की माँग- डॉ० पुनीत  द्विवेदी 


• महामारी प्रबंधन विषय के रूप में पढ़ाया जाये।

• लगभग 100 वर्षों में महामारी का आगमन होता है जो विनाशक होता है। 

• स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं को मज़बूत बनाने का लक्ष्य साधना आवश्यक। 


प्रबंधन व्यवस्थित जीवन का एक बड़ा ही महत्वपूर्ण अंग है। शारीरिक संरचना के प्रबंधन से लेकर जीवन की दिनचर्या तक सब-कुछ प्रबंधन पर ही निर्भर करता है। देखा गया है कि आपदा प्रबंधन पर सरकार का ध्यान रहता है परंतु महामारी प्रबंधन पर कोई महत्वपूर्ण ज़ोर नहीं दिया गया है और इसे आपदा प्रबंधन का ही हिस्सा मान लिया गया है। जबकि महामारी प्रबंधन एक अनवरत प्रयास के रूप में अपेक्षित है। 


ज्ञातव्य है कि महामारी एक निश्चित अंतराल पर प्रकट होती है और कुछ वर्षों तक जिसका प्रभाव देखने को मिलता है। व्यवस्था यह होनी चाहिये कि अध्ययन करके, जैसे मौसम का पूर्वानुमान लगाया जाता है; ठीक वैसे ही महामारी के पूर्वानुमान से संबंधित शोध एवं रणनीति पर काम करना चाहिये। मूलतः महामारी स्वास्थ्य से संबंधित होती है। अत: स्वास्थ्य सुविधाओं पर समुचित राशि व्यय कर स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत  सुविधाओं को मज़बूत बनाने का लक्ष्य रखा जाना चाहिये। जिससे कि संक्रमण पर रोक लगाकर होने वाली मृत्यु  की संख्या को कम किया जा सके जिससे अस्थिरता का वातावरण अथवा मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात ना बनें। 


अध्ययन के द्वारा पूर्व  की कुछ बड़ी महामारियों ने देश-विदेश और समाज पर जो प्रभाव डाला है वह दृष्टांत के रूप में रणनीति बनाने में सहायक सिद्ध हो सकती है। महामारी का यदि इतिहास देखें तो यह  देखा गया है कि दुनिया में हर 100 साल पर 'महामारी' का प्रकोप हुआ है। वर्ष 1720 में दुनिया में द ग्रेट प्लेग ऑफ़  मार्सेल फैला था।जिसमें  लगभग 1 लाख लोग काल के गाल में समाहित हो गये थे। पुन: 100 वर्ष बाद सन् 1820 में एशियाई देशों में हैजा का प्रकोप रहा। इस महामारी में भी लगभग एक लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इसी क्रम में सन् 1918 से 1920 में दुनिया ने स्पेनिश फ्लू के क़हर को झेला। इस बीमारी ने उस समय लगभग 5 करोड़ लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। और अब फिर 100 साल बाद दुनिया पर आई कोरोना की तबाही, जिसकी वजह से लगभग पूरी दुनिया में लॉक डाउन है और वर्ष 2020-21 में हम इसके दुष्परिणाम देख रहे हैं। अर्थात् 100 वर्षों में एक बार महामारी का आना लगभग तय है और इसके अनुरूप रणनीति बनाना वर्तमान एवं आगामी सरकारों का कर्तव्य है। 


ध्यान रहे, मानव संसाधन सबसे बड़ी पूँजी है। भारत की बड़ी जनसंख्या भारत पर भार नहीं एक अवसर प्रदान करती है। मानव संसाधन का सही उपयोग राष्ट्र पुनर्निर्माण के लिये अत्यावश्यक है। अकुशल प्रबंधन के चलते देश की नींव कमजोर हो रही है जिसपर देश का भविष्य टिका हुआ है। आवश्यकता है वैचारिक आन्दोलनों का। जो विकास के मार्ग को प्रशस्त करे ना कि विकास में बाधक बनें। समाज के सभी वर्गों का एकजुट होकर राष्ट्र पुनर्निर्माण के कार्य में स्वयं को लगाने का लक्ष्य होना चाहिये। महामारी के समय, महामारी के पश्चात बिगड़े आर्थिक हालात को सुधारने का ज़िम्मा मात्र सरकारों का नहीं अपितु समस्त नागरिकों का भी है। 


‘उत्पत्ति के साथ नाश और विकास के साथ ह्रास’ प्रकृति का नियम है। प्राकृतिक संसाधनों का अविवेक पूर्ण विदोहन भी महामारी को न्योता देता है। अत: औद्योगीकरण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का भाव भी मन में रहे। पंचभूतों के संरक्षण से ही मानव सभ्यता और प्राणी मात्र का कल्याण संभव है। हम नहीं कर पा रहे हैं अत: प्रकृति को स्वयं बैलेंस करना पड़ रहा है, जो भयावह है और इसके कारक हम स्वयं ही हैं। 


(लेखक डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी  मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स, इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक के रूप में कार्यरत हैं)








मर्यादित राष्ट्रमंगल भाव को लोकमंगल हित जनमानस तक पहुँचाते श्रीराम- डॉ. पुनीत द्विवेदी


मर्यादित राष्ट्रमंगल भाव को लोकमंगल हित जनमानस तक पहुँचाते श्रीराम- डॉ. पुनीत द्विवेदी 

• सामाजिक समरसता के प्रणेता रहे हैं श्री राम।
• मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम त्याग और संघर्षों के पर्याय रहे हैं। 
• वसुधैव कुटुम्बकम् के प्रचारक रहे हैं श्री राम। 
• लोक कल्याण एवं प्राणी मात्र के कल्याण के लिये निज जीवन अर्पित किया श्रीराम ने। 

मर्यादा पुरुषोत्तम लोक कल्याण के भाव को जन-जन तक पहुँचाने वाले श्रीराम भारतीय और विश्व समाज में पूजित हैं। ज्ञातव्य है कि ‘त्याग ही राम की महिमा है’ और राम त्याग के पर्याय। जन्म से महापरिनिर्वाण तक श्री राम का जीवन त्याग एवं संघर्षों का जीवन रहा है। जीवन के प्रत्येक क्षण में त्याग भाव के साथ संघर्षों में मनुष्य जीवन को महान उदाहरण बनाकर लोक कल्याण के द्वारा राष्ट्र को परंवैभव की ओर अग्रसर करने का मार्ग श्री राम ने प्रशस्त किया है। 

मूल्यों के साथ जीवन प्रबंधन के द्वारा कैसे लोकमंगल के भाव को प्रमुखता दी जा सकती है, इसे दशरथ नंदन राजा राम ने चरितार्थ किया है। जीवन के प्रत्येक पड़ाव पर मनुष्य जीवन में नैतिक मूल्यों की प्रासंगिकता के पर्याय रहे हैं श्री राम। विभिन्न विचारधाराओं के साथ सामन्जस्य स्थापित कर जगती के कल्याण के लिये अपने जीवन को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करने वाले जन-नायक रहे हैं श्री राम। 

ज्ञान और शील के माध्यम से विश्व कल्याण एवं राष्ट्रीय  एकता के लिये एक तपस्वी की भाँति भारतवर्ष में अलख जगाने  की शक्ति हैं श्री राम। जिन्होंने बाल्यकाल से ही समाज कल्याण हित अपने जीवन को राष्ट्र के नाम समर्पित कर हम सबके प्रेरणापुरुष बने। श्री राम का जीवन प्रत्येक भारतीय एवं विश्व समुदाय के लिये भी सदा प्रासंगिक रहा है और रहेगा क्योंकि श्री राम ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के भाव को पूरे विश्व में प्रचारित-प्रसारित करने के लिये कृतसंकल्पित रहे हैं। 

तत्कालीन हिंदु समाज को एकजुट कर सुमंगलम् के लक्ष्यों को साध कर समाज के सुदृढ़ समायोजन के कारक रहे हैं श्री राम। 
समाज में उपेक्षित वर्ग के कल्याण हित, उनके जीवन स्तर को सुदृढ़ और सुंदर बनाने हित अपने जीवन में संघर्षों को चुनकर आगे बढ़ने वाले समाज सुधारक रहे हैं श्री राम। 

भील, केवट, अहल्या, बानर, गिद्ध, राक्षस अर्थात् मनुष्य ही नहीं अपितु प्राणी मात्र के कल्याण के लिये अपने जीवन को अर्पित कर देने वाले महापुरुष रहे हैं श्री राम। माता शबरी के जूठे बेरों का सेवन कर, निषाद राज गुह को हृदय से लगाकर, केवट के प्रेम से विह्वल हो उपेक्षित हिंदु भील समुदाय को मुख्य धारा से जोड़ने के लिये सामाजिक समरसता के प्रणेता रहे हैं श्री राम।

आईये, रामनवमी के पावन अवसर पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन से सीख लेकर वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों को सम्यक् और संस्कारित बनायें। लोक मंगल ही सनातन हिंदु समाज की विशेषता है जिसमें जननायक, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जीवन सदा प्रेरणादायी रहा है और रहेगा। 

( लेखक डॉ.पुनीत कुमार द्विवेदी (शिक्षाविद्) मॉडर्न  ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूशन्स, इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक की भूमिका में कार्यरत हैं)




 

महामारी का तांडव: ख़ुशमिज़ाज होना ही बेहतर इलाज- डॉ. पुनीत द्विवेदी

महामारी का तांडव: ख़ुशमिज़ाज होना ही बेहतर इलाज- डॉ. पुनीत द्विवेदी 


- ख़ुश रहने से स्ट्रेस लेवल कम होता है और आक्सीजन की मात्रा बढ़ती है। 
- म्यूज़िक सुनना, मंत्रोच्चार करने से भी स्ट्रेस लेवल कम किया जा सकता है। 
- नकारात्मक खबरों एवं अफ़वाहों से दूरी बनायें।
- स्वयं को व्यस्त रखने के लिये पुस्तकें पढ़ें, गीत, कविता कहानी लिखें, पेंटिंग करें। 
- कोविड के लिये सुझाई गई दवाओं का सेवन करते रहें। 

अक्सर देखा गया है कि बीमारी होते ही पेशेंट के साथ परिवार के सभी लोग पैनिक हो जाते हैं। पैनिक होने से भय का वातावरण बनता है। भय के वातावरण से शरीर का श्वसन तंत्र प्रभावित होता है एवं शरीर में आक्सीजन की कमी होने लगती है। दूसरी तरफ़ ख़ुशमिज़ाज व्यक्ति का ऑक्सीजन लेवल शरीर की आवश्यकता के अनुकूल रहता है। 

परिवार के एक व्यक्ति के संक्रमित होने और बाक़ी परिवार जनों के अंदर बढ़ते भय के कारण उनके भी संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाती है। हमें यह ध्यान रखना है कि कोरोना वायरस का संक्रमण अलग-अलग शरीरों पर अलग-अलग प्रकार से प्रभाव दिखा रहा है। कोई आवश्यक नहीं कि सबको हॉस्पीटल में एडमिट करना ही पड़े। यह भी देखा गया है कि बहुत सारे संक्रमित मरीज़ घर पर भी आईसोलेट होकर ठीक हो गये हैं। ख़ासकर चिंता उन संक्रमित मरीज़ों के लिये अधिक है जो अन्य किसी गंभीर बीमारी जैसे कैंसर, किडनी की समस्या, फेंफडे की समस्या, डायबिटीज़, हृदय रोग आदि से ग्रसित हैं। परंतु, यह देखा गया है कि ऐसे भी बहुत सारे मरीज़ स्वस्थ होकर घर जा रहे हैं। 

संक्रमण के बाद होम आईसोलेशन में कई ऐसी होम रेमिडी भी हैं जिनके माध्यम से संक्रमण पर विजय प्राप्त किया जा सकता है। जैसे दिन में तीन से पाँच बार गर्म पानी में अज्वाईन डालकर भाप लेना जिससे कि फेंफडे में बलगम डायल्यूट होता रहे और कफ से जकड़न ना हो; जिससे सॉस लेने में दिक़्क़त ना हो। गर्म पानी से गारगिल (कुल्ली) करते समय पानी में हल्दी मिलाने से लाभ होगा। नाक में अणु तैल या सरसों का तेल डालें। ऑक्सीजन की समस्या लगने पर पेट के बल लेटें। योग-प्राणायाम से भी ऑक्सीजन का लेवेल आसानी से बढ़ाया जा सकता है और इससे रोक प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। यह ध्यान रहे कि साथ ही साथ शासन द्वारा दिये गये अन्य बचाव हित सुझाओं का ध्यान रखते हुये, सुझाई गई दवाओं का नित्य समय पर सेवन करें। भोजन भर पेट करें। भोजन में फल-सब्ज़ियॉ, दूध आदि का समुचित सेवन करें। 

शोध में देखा गया है कि ख़ुशमिज़ाज व्यक्ति का आत्मबल बढ़ा  रहता है और वह आसानी से किसी रोग पर विजय प्राप्त कर लेता है। अत: आइसोलेशन में भी ख़ुशमिज़ाज रहें। अच्छा साहित्य, पुस्तकें पढ़ें। पेंटिंग इत्यादि में यदि अभिरुचि है तो पेंटिंग्स बनायें। संगीत सुनें । कहा जाता है कि संगीत में भी रोग को हीलिंग करने की क्षमता होती है। इससे मन ठीक और मन ठीक तो बीमारी ठीक हो जाती है। यह ध्यान रहे कि प्रत्येक संक्रमण का एक समय काल होता है उसके पश्चात उसका प्रभाव क्रमश: कम होता जाता है। हमें उस समय की प्रतीक्षा करते हुये सभी मेडिकल प्रिसक्रिप्शन्स लेते रहना है। 

हमारा आत्मविश्वास हमें बीमारी पर जीत प्रदान करता है। एवं हमारी ख़ुशमिज़ाजी के कारण हमारे साथ-साथ हमारे परिवार जन एवं अन्य पीड़ित मरीज़ों का भी आत्मविश्वास बढ़ता है और वो भी शीघ्र रीकवर होने लगते हैं। नकारात्मक विचारों एवं समाचारों को स्वयं से दूर रखें। यह आपको मानसिक रूप कमजोर करते हैं जिससे प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने लगती है। सनातन धर्म में मंत्रोच्चार  से आत्मशुद्धि एवं आत्मविश्वास बढ़ाने के उद्धरण भी देखने को मिलते हैं। अत: उपयुक्त मंत्रों के उच्चारण से भी श्वसन तंत्र को मज़बूत किया जा सकता है।

कुल मिलाकर आपको सकारात्मक रहना है। सकारात्मकता ही विजय है। स्वयं को ख़ुश रखकर हम अपने और अपने परिजनों का आत्मविश्वास बढ़ा सकते हैं और इस महामारी पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। अत: ख़ुश रहें। स्वस्थ रहें। मस्त रहें। 

(लेखक डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स, इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक की भूमिका में कार्यरत हैं।)







 

‘कैरियर हो या कोविड’ सकारात्मकता ही जीतती है- डॉ. पुनीत द्विवेदी


‘कैरियर हो या कोविड’ सकारात्मकता ही जीतती है- डॉ. पुनीत द्विवेदी 


वैसे तो आज के संदर्भ में दुनियॉ का सबसे निगेटिव शब्द बन गया है ‘पॉज़िटिव’ होना। जहॉ पॉज़िटिव होना सकारात्मकता का प्रतीक हुआ करता था; कोरोना महामारी ने पॉज़िटिव शब्द को नकारात्मकता का प्रतीक बना दिया है। लेकिन फिर भी मन से पॉज़िटिव रहकर वायरस की इस बीमारी से बचा जा करता है। करियर और कोरोना की बीमारी दोनों सकारात्मक एटीट्यूड से ठीक होते हैं। करियर के प्रति सजक व्यक्ति का एटीट्यूड हमेशा सकारात्मक रहता है। चेहरे के भाव सकारात्मक रहते हैं। आंतरिक सोच सकारात्मक रहती है। सब्जेक्ट नॉलेज पर पकड़ भी विषषवार सकारात्मक बनाती है। अत: सकारात्मकता अंतत: सर्वदा लाभकारी होती है। 

प्रश्न उठता है सकारात्मक क्यों रहें? सकारात्मक होना बड़ा ही आसान है। सकारात्मकता गिरे हुये मनोबल को पुन: शक्ति एवं ऊर्जा प्रदान करती है और व्यक्ति विजय प्राप्त करता है। करियर की चिंता और कोरोना कहीं ना कहीं हमारी आत्म़शक्ति को क्षीण करने का प्रयास करते हैं। सही डायरेक्शन में प्रयास व सही इलाज लेने पर सफलता मिलती है। अर्थात् अपनी ओर से प्रयत्न करना, प्रयत्न करते रहना नितांत आवश्यक है। एक श्लोक में कहा गया है कि “प्रयत्नेन योग्या सुयोग्या भवंति” अर्थात् ‘प्रयत्न करने से योग्य व्यक्ति और सुयोग्य बनता है।’

कोरोना काल में अपनी शिक्षा पूर्ण करने वाले विद्यार्थियों को यह ध्यान रखना है कि इस महामारी काल में किस प्रकार हम अपनी योग्यता को और निखार सकते हैं। जैसे कि देखने में आ रहा है कि बड़े-बड़े कारपोरेट हाऊसेस, कंपनियों ऑनलाइन मोड में आ चुकी हैं। अर्थात् वर्क फ़्रॉम होम की अवधारण मूर्त रूप ले चुकी है। जहॉ वर्चुअली काम कर सक पाना संभव हैं, वहॉ योग्य वर्चुअल मैनपॉवर को रोज़गार मिल रहा है। यह समय बदलाव का है। नई व्यवस्था को सीखने-समझने का है।स्वयं को उस व्यवस्था को अनुरूप तैयार करने एवं सफल होने का ये समय है। अत: पूरे मनोयोग से नई व्यवस्था के अनुरूप अपनी योग्यता एवं कौशल विकास को महत्वपूर्ण भूमिका में रखना आवश्यक है एवं उक्त निहित पूर्ण तैयारी भी अपेक्षित है। 

ठीक ऐसे ही कोरोना काल में पैनिक होना सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। जिसके कारण पूरे विश्व में ‘पॉज़िटिव’ नकारात्मकता फैल रही है। वैश्विक बीमारी कोरोना को लेकर अनेक भ्रांतियों समाज में फैल गयी हैं। सोशल मीडिया में तरह-तरह के निराधार बातों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के कारण समाज में पैनिक क्रियेट किया जा रहा है। महामारी के इस काल में ‘शहरी-नक्सलवाद’ के हौसले भी बुलंद हैं। इस महामारी के काल में राजनीतिक दलों की आपसी नोंक-झोंक पीड़ितों की पीड़ा बढ़ाने के कारण बन रहे हैं। अर्थात् समाज में सकारात्मकता का अभाव देखने को मिल रहा है। विभिन्न राजनीतिक गुटों के बीच का आपसी वैमनस्य समाज के पतन का कारण बनता जा रहा है। आवश्यकता है एकजुट होकर सकारात्मक परिवेश के निर्माण की। जिसमें समाज के प्रत्येक वर्ग का सहयोग अपेक्षित है। 

चिकित्सक का सकारात्मक स्वभाव मरीज़ के आत्मविश्वास को प्रबल करता है, परिवार जनों का सकारात्मक व्यवहार पीड़ित को शक्ति प्रदान करता है, आस-पास का सहयोगी परिवेश पीड़ित के मनोबल को बढ़ाता है, प्रशासन का कुशल प्रबंधन पीड़ित समाज में  विश्वास बढ़ाता है, सकारात्मक  चर्चायें, सकारात्मक प्रबंधन, टीम भाव, सहयोग की भावना, अनर्गल बयानबाज़ी एवं सूचनाओं पर प्रतिबंध, नकारात्मक समाचारों के प्रसारण पर रोक, सोशल मीडिया का विवेकपूर्वक सही उपयोग समाज में सकारात्मक परिवेश बनाने में सहायक हैं। विडंबना है और खेद भी कि संसाधनों  की कमी से समूचा विश्व जूझ रहा है। आवश्यकता है समाज को एकजुट होकर इज़रायल देश की भॉति कोरोना से लड़ने की। विचारों की सकारात्मकता ही विजय की कुंजी सिद्ध होगी, चाहे  समस्या करियर की हो या कोरोना की। चुनाव आपको करना है। 

[लेखक डॉ.पुनीत कुमार द्विवेदी (शिक्षाविद) मॉडर्न  ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स, इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक की भूमिका में कार्यरत हैं।]








 

महामारी के इस संकटकाल में प्रबल होती देश विरोधी ताक़तों से सावधान- डॉ. पुनीत द्विवेदी

हमारे लिये महत्वपूर्ण राष्ट्र होना चाहिये। संकटकाल में जिस प्रकार वाह्य विदेशी ताकतों के साथ-साथ आंतरिक कलहकारी शक्तियॉ आपदा को अवसर की समझ में सक्रिय हुयी हैं उससे देश की प्रतिरोधक क्षमता और कमजोर होगी। यह समय ऐसा है कि जब आपसी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ‘राष्ट्रनीति’ पर काम करना चाहिये। वैश्विक महामारी कोरोना के दुष्प्रभाव को कम करने के लिये सकारात्मक ऊर्जा के साथ टीम वर्क पर ध्यान देना आवश्यक है। इसमें सरकार और विपक्ष दोनों का समान उत्तरदायित्व बनता है। आपदा प्रबंधन हित पक्ष-विपक्ष अन्य मोर्चों को एकसाथ एकजुट होकर राष्ट्र की संप्रभुता का संरक्षण करना होता है। जनता की रक्षा हित संसाधनों की उपलब्धता पर सभी दलों का समान ध्यान होना चाहिये। इज़रायल जैसे देशों का अद्भुत उदाहरण मिलता है , जहॉ कोरोना महामारी से देश की रक्षा करने के लिये सरकार और विपक्ष दोनों का एकजुट होकर निर्णय लेना, जिससे कि आज इज़रायल ‘मास्क फ़्री कंट्री’ के रूप में जाना जाने लगा है। 


भारत केन्द्र और राज्य की राजनीति के साथ एक सशक्त लोकतंत्र के रूप में पूरे विश्व में जाना-पहचाना जाता है। इस महान संप्रभु राष्ट्र ने विश्व समुदाय को सदा प्रेरित किया है और आवश्यकता पड़ने पर पालन-पोषण भी किया है। परंतु वैश्विक नीतियों का प्रभाव या दुष्प्रभाव कहें या सशक्त नेतृत्व की कमी के कारण पूर्व के लगभग ७ दशकों तक भारत उपेक्षित रहा। वर्तमान नेतृत्व ने उपलब्ध संसाधनों के समुचित उपयोग, नई नवाचार की नीतियों, कुशल एवं प्रभावी सामरिक दृष्टिकोण एवं विदेश नीति के माध्यम से कम समय में देश को और अधिक सशक्त किया है। भारत के आधारभूत संरचना का चहुंमुखी विकास विगत ५-६ वर्षों में तेज़ी से बढ़ता हुआ दिखा है।नोटबंदी में विदेशी शत्रुओं के ख़ज़ाने ख़ाली किये हैं, तथाकथित NGOs पर कसी नकेल ने भारत में आतंकवादी गतिविधियों को प्रायोजित करने वाले स्रोतों को बंद किया है, धारा ३७०और नागरिकता क़ानून ने क्रमश: कश्मीर की समस्या का समाधान किया है एवं बांग्लादेशी घुसपैठ के मंसूबों पर पानी फेर दिया है, कश्मीर के विस्थापितों का एक लंबी प्रतीक्षा के पश्चात घर वापसी हुयी है,वहीं NRC ने ग़ैर भारतीय नागरिकों पर सिकंजा कसा है। यह भी देखा गया है कि पड़ोसी दुश्मन को भी समय-समय पर अब सबक़ सिखा ही दिया जाता है; कभी सर्जिकल अटैक से तो कभी डोकलाम के मुद्दे पर। 


वास्तव में भारत अब पहले का वह दब्बू देश नहीं रहा जो किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर मात्र सहभागिता की दृष्टि से देखा जाता था जिसके मत, विचार और विषय का कोई महत्व नहीं होता था और ना ही कोई देश महत्व देना चाहता था। भारत मात्र एक मार्केट था जहॉ सबको व्यापार करना था और भारत को दबा कर रखना था। वर्तमान महामारी के प्रथम चरण में भारतीय केन्द्रीय सरकार के लॉकडाऊन का असर कोरोना पर भारत की एक बहुत बड़ी जीत के रूप में विश्व समुदाय ने माना था और भारत की वाहवाही हुयी थी। स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की कमी भारत जैसे विकासशील देशों में प्राय: सामान्य बात है। परंतु , भारत की दूरदर्शिता कहें या नेतृत्व की कुशलता; लॉकडाऊन की अवधि में स्वास्थ्य संबंधी उन व्यवस्थाओं का विकास अत्यंत ही द्रुतगति हुआ; जिसके बारे में सोच सक पाना भी मुश्किल था। चाहें वो वेंटिलेटर्स का निर्माण हो या मॉस्क और सेनेटाईजर्स, दवाओं या पी.पी.ई किट्स। भारत ने पूरे आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भर भारत की और कदम बढ़ाना प्रारंभ कर दिया था। चुनौतियाँ आती गईं, समाधान होते गये, भारत रूका नहीं चलता रहा, बढ़ता रहा। कोरोना रोकथाम संबंधी केन्द्र की नीतियों का सभी राज्यों ने पालन किया और जिसका परिणाम सकारात्मक रहा। हमें कम हानि हुयी। 


किसी भी देश की रीढ़ उस देश की अर्थव्यवस्था होती है जो कृषि, उद्योग, व्यापार, वाणिज्य, सेवाओं आदि पर निर्भर करती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय लॉकडाऊन अर्थव्यवस्था के लिये घातक सिद्ध होती, क्योंकि पिछली बार के नुक़सान की भरपाई अभी तक हुयी नहीं कि कोरोना महामारी का दूसरा विनाशक दौर आ पहुँचा।अब ज़िम्मेदारी राज्यों की थी। भारत ही क्या विश्व के सबसे ताकतवर देशों की भी अर्थव्यवस्था, चिकित्सा व्यवस्था, शासन- प्रशासनिक व्यवस्थाएं सब चरमरा गई हैं। ध्यान रहे यह एक वैश्विक महामारी है जो वैश्विक समस्या है। इसके निदान हेतु सबका सहयोग नितांत आवश्यक है। संकट की इस घड़ी में अपने नागरिकों एवं विश्व समुदाय की रक्षा के लिये भारतीय वैज्ञानिकों ने वैक्सीन पर शोध कर सबसे कम मूल्य में वैक्सीन बनाकर विश्व समुदाय को अर्पित किया।‘वसुधैव कुटुम्बकम’ हमारी विशेषता है। आज समूचा विश्व भारत की तरफ़ आशा भरी निगाहों से देख रहा है। सबको पता है भारत सेवक है और सेवा करेगा। क्योंकि सेवा हमारी संस्कृति है। 


विडंबना है, देश की आंतरिक सुरक्षा जो कि ‘शहरी नक्सलवाद’ से प्रभावित है। संकट के इस काल में देश के साथ, देश के लिये खड़े होने की अपेक्षा कुछ देश विरोधी आंतरिक ताक़तें देश को कमजोर करने में लगीं हैं। चीन समर्थित वामपंथ इस समय देश में असुरक्षा एवं अस्थिरता का माहौल बनाने से नहीं चूक रहा। ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा ध्यान वर्तमान समय में देश-समाज और हमारे लोगों की सुरक्षा करने का है। इस समय एकजुट होकर सरकार- शासन- प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जनसेवा करने का है।मानव सेवा ही माधव सेवा है। ध्यान रहे, हमें सरकार को कोसने के अन्य कई अवसर मिलेंगे अगर हम जीवित बचे रहे तो। 


[  लेखक डॉ पुनीत कुमार द्विवेदी (शिक्षाविद्)  मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स, इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक की भूमिका में कार्यरत हैं]