Saturday, 13 November 2021

योग्य जनों को मिला ‘पद्म सम्मान’

योग्य जनों को मिला पद्म सम्मान- डॉ. पुनीत द्विवेदी 

भारत में पुरस्कार पहले ऊपरी पहुँच और जैक के कारण आसानी से ख़रीद लिये जाते थे। परंतु पिछले कुछ वर्षों से ये सम्मान समाज प्रत्येक तबके के योग्य समाजसेवियों को जा रहा है। यही बदलते भारत की तस्वीर है जिसमें ट्रांसजेंटर, गरीब, श्रमिक जिन्होंने भारत की सेवा में अप्रतिम योगदान दिया है को पद्म सम्मान से सम्मानित किया गया है। दरअसल यह उनका सम्मान नहीं अपितु पद्म सम्मान जैसे महत्वपूर्ण सम्मान का भी सम्मान है। 
जयतु भारतम्। 

Tuesday, 29 June 2021

जीवन में आत्मविश्वास: डॉ. पुनीत द्विवेदी


आत्मविश्वास शब्द दो शब्दों का संयोजन है आत्म और विश्वास अर्थात् स्वयं पर विश्वास। स्वयं पर विश्वास तब होगा जब स्वयं पर नियंत्रण होगा। जीवन के सभी क्रियाकलापों पर नियंत्रण कर सक पाना आसान नहीं। कुछ वाह्य क्रियाकलापों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं रहता। नियंत्रण नहीं हो पाने से हमें दुख होता है। और दुख हमारी मानसिकता को नकारात्मकता की ओर अग्रसर करता है। यह प्रक्रिया व्यक्ति के व्यक्तित्व पर निर्भर करती है। समस्याओं के समाधान का सबका अपना-अपना तरीक़ा होता है। जब चीज़ें हमारे अनुसार होतीं हैं तो हमारा आत्मविश्वास और बढ़ता जाता है। और इसके विपरीत जब चीज़ें हमारे अनुसार नहीं होती हैं तो धीरे-धीरे हमारा आत्मविश्वास भी कमजोर होने लगता है। जीवन के संघर्ष भी आत्मविश्वास को बढ़ाने या घटाने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। यदि वातावरण का अध्ययन करें तो हम पाते हैं कि हमारा जीवन राजनीतिक वातावरण, आर्थिक वातावरण, सामाजिक परिवेश, तकनीकी परिवेश और क़ानूनी वातावरण के आस पास ही घूमता रहता है। प्रत्येक व्यक्ति इन वातावरणों से प्रभावित रहता ही है।आत्मविश्वास के और मज़बूत होने में इन वातावरणों की महती भूमिका होती है। इन पर नियंत्रण कर सक पाना मुश्किल है परंतु इनके साथ स्वयं को समायोजित कर लेना बुद्धिमत्ता है। उस व्यक्ति का आत्मविश्वास सबसे अधिक मज़बूत होता है जो अपना काम आसानी से निकलवा लेता है। वह अवसरोचित अपनी बुद्धि का समुचित उपयोग करता है जिससे कि बाधाओं से बचा जा सके और कम समय में अपना कार्य आसानी से पूर्ण किया जा सके।  कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण होने पर आत्म विश्वास और प्रबल होता है। अत: जीवन में सकारात्मकता के साथ अपनी बुद्धि और विवेक की अवसरोचित उपयोग कर अपने अभीष्ट की सिद्धि करना ही विजेता होना है। ऐसा जीवन जीने वाला व्यक्ति के भीतर असीम ऊर्जा का संचार होने लगता है और वह सदा जीतता जाता है। उसका आत्मविश्वास और बढ़ता जाता है। 

- डॉ. पुनीत द्विवेदी, प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक, मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स इंदौर। 

Self-confidence in life:

The word self-confidence is a combination of two words self and Confidence (faith) i.e. belief in oneself. Confidence in yourself will happen when you have control over yourself. It is not easy to be able to control all the activities of life. We have no control over some external activities. We feel sad when we are not able to control them. And misery leads our mindset to negativity. This process depends on the personality of the individual. Everyone has their own way of solving problems. When things go according to us, our confidence grows even more. And on the contrary, when things do not go according to us, then gradually our self-confidence also starts to weaken. The struggles of life also play an important role in increasing or decreasing self-confidence. If we study the environment, we find that our life revolves around the political environment, economic environment, social environment, technological environment and legal environment. Each and every person is affected by these environments. These environments play an important role in making self-confidence more strong. It is difficult to control them but it is wise to adjust oneself with them. The self-confidence of the person is strongest, who gets his work done easily. He makes proper use of his intelligence on occasion so that obstacles can be avoided and his work can be completed easily in less time. Self confidence becomes stronger when the task is completed successfully. Therefore, in life with positivity, by making use of your intelligence and discretion on occasion, to achieve your desired is to be a winner. A person living such a life starts infusing infinite energy within and he always wins. His confidence increases further.

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- Dr. Punit K Dwivedi, Professor & Group Director, Modern Group of Institutions, Indore 
Call/ WhatsApp: +91-9993456731

Sunday, 20 June 2021

योग: कर्मसु कौशलम् : सनातन ने विश्व के कल्याण के लिये योग दिया - डॉ. पुनीत द्विवेदी

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस विशेष-

योग: कर्मसु  कौशलम् : सनातन ने विश्व के कल्याण के लिये योग दिया - डॉ. पुनीत द्विवेदी 

वसुधैव कुटुम्बकम् का भाव धारण करने वाला यह सनातन धर्म सदा से विश्व कल्याण हित कृतसंकल्पित रहा है। आयुर्वेद से लेकर योग तक प्राणी मात्र के कल्याण के लिये सदियों से अहर्निश सेवा दे रहे हैं। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में समाहित अपार ज्ञान भारतीय समाज के विश्व गुरु होने का प्रमाण है। अनेकों आक्रमण एवं दुराग्रहों के पश्चात भी भारतीय सनातन समाज ने अपने गौरव को संजोये रखा। ऋषि-मुनियों ने वैदिक काल से लेकर अब तक आयुर्वेद एवं योग को समृद्ध किया है। आचार्य चरक, सुश्रुत, महायोगी पतंजलि एवं ऋषि दधीचि की यह तपोभूमि योग और आयुर्वेद के माध्यम से स्वस्थ एवं निरोगी समाज की स्थापना करती आई है। आज समूचा विश्व भारतीय योग का लोहा मान रहा है। योग को सबने अपना लिया है। स्वस्थ जीवन के मूल में ही योग है। वैसे भी जीवन में योग का अपना एक अलग ही महात्म्य है। यदि हम बात करें तो सहयोग, संयोग, एवं वियोग आदि शब्दों में भी योग एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। दरअसल, योग का तात्पर्य जोड़ने है। भारतीय सनातन समाज सदा से विश्व को जोड़ने का काम करता आया है। सहयोग की भावना भारतीय समाज के कण-कण में रची-बसी है। यह संयोग की ही बात है कि इस संसार में योग संबंधों को जोड़ने का माध्यम भी बना है। वियोग; योग से दूरी दुख और पीड़ा का कारक बना है। शरीर और आत्मा के मध्य तारतम्यता  हेतु योग अति आवश्यक माध्यम के रूप में जाना जाता है। योग प्राणायाम से  लेकर शारीरिक व्यायाम शरीर में ऊर्जा का निर्माण करते हैं जो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का माध्यम बनती हैं । ध्यान योग से मन-मस्तिष्क एवं प्राण को वो अजेय शक्तियाँ मिलती है जिसकी खोज में सदियों लग जाते हैं। 

वास्तव में शरीर और आत्मा के संयोजन के लिये योग आवश्यक है। मन के हारे हार है,मन के जीते जीत। मन को सुदृढ़ एवं सात्विक बनाने हेतु योग महती भूमिका निभाता है। मज़बूत मन की मन:स्थिति भी सकारात्मकता से भरी और जीतने वाली होती है। पंचभूतों से बना यह मानव शरीर योग के माध्यम से ही अपने अभीष्ट की सिद्धि कर पाता है। आंतरिक के साथ-साथ वाह्य अर्थात् शरीर को निरोग एवं हृष्ट-पुष्ट करने की ज़िम्मेदारी भी योग की ही है। अत: करें योग-रहें निरोग। मन की एकाग्रता जीवन को बुद्ध बना सकती है। इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने का सर्वसुलभ माध्यम है योग। शरीर-आत्मा और परमात्मा (अजेय शक्ति) के बीच तारतम्यता स्थापित कर  मनुष्य जीवन की सार्थकता को वास्तविक दृष्टि देने का कार्य करता है योग। कोरोना जैसी महामारी में भी योग ने रोग प्रतिरोधक क्षमता में विकास के द्वारा विषाणुओं पर विजय प्राप्त करने की गाथा लिखी है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास में योग-प्राणायाम-व्यायाम के महत्व को अब हर कोई जान गया है। 

अर्थात् , आज समूचे विश्व ने योग के महत्व को समझ लिया है। विगत सात वर्षों से मनाया जाने वाला ये अंतरराष्ट्रीय योग दिवस ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के भाव के साथ विश्व परिवार के कल्याण के लिये अपनी सार्थकता को सिद्ध कर रहा है। भारत सरकार के इस अनूठे और आवश्यक पहल ने निरोगी शरीर के साथ निरोगी विश्व समुदाय की परिकल्पना को मूर्त रूप देने का भगीरथ प्रयास किया है जो वंदनीय है। आईये, योग के महत्व को जन-जन तक पहुँचायें। योग को दिनचर्या में अपनायें। योग जीवन का वह दर्शन है जो अनंत काल से अपनी सार्थकता को सिद्ध करता आया है और भविष्य में भी उतना ही प्रासंगिक रहेगा। यह समय सनातन की देन ‘योग’ पर गर्व करने का समय है। आप सभी को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। 
(लेखक डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक के रूप में कार्यरत हैं।)

Monday, 7 June 2021

नीयत, नीति और निरंतर परिश्रम से सकारात्मक नतीजों की समीक्षा कर गये प्रधानमंत्री मोदी- डॉ. पुनीत द्विवेदी

 नीयत, नीति और निरंतर परिश्रम से सकारात्मक नतीजों की समीक्षा कर गये प्रधानमंत्री मोदी-  डॉ. पुनीत द्विवेदी 

आज के अपने  उद्बोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने वैक्सीनेशन हेतु देश की जनता से एक भावनात्मक अपील की। विगत साठ वर्ष का हवाला देकर यह बताया कि वैक्सीन को लेकर कैसे विगत कई वर्षों से भारतीय समाज की उपेक्षा की जाती रही है। विदेशों पर वैक्सीनेशन हेतु हमारी निर्भरता हमें सदा खलती रही है। प्रधानमंत्री का यह बिंदु आँखें खोल देने वाला था कि पोलियो, चेचक और हेपेटाईटिस-बी आदि के टीके जब विदेशों में लग जाते थे तब भारत का नंबर आता था। जिसमें कई बार १०-१० वर्ष तक लग जाते थे; और हम घुट-घुट कर मरते संघर्ष करते रहते थे। दो बड़े स्वदेशी वैक्सीन निर्माताओं के आगे आने से देश आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा है। वैक्सीन के लिये अब हम आत्मनिर्भर हो चुके हैं। विदेशों की राह तकना अब बंद हुआ है। जिसका श्रेय देश के प्रतिभावान वैज्ञानिकों एवं वैक्सीन उत्पादक दोनों कंपनियों को जाता है। 

प्रधानमंत्री के अनुसार दूसरी लहर से अभी हमारी लड़ाई जारी है । जिसमें वैक्सीन जीवन रक्षक के रूप में पहचानी गयी है। कोविड प्रोटोकॉल का मौलिकता से पालन करना ही हमारे लिये सुरक्षा कवच है। ‘मिशन इंद्रधनुष’ के माध्यम से वैक्सीन की डोज़ प्रत्येक नागरिक तक शीघ्र पहुँचाने की बात को भी प्रधानमंत्री ने प्रमुखता से उठाया। वैक्सिनेशन अभियान का मज़ाक़ उड़ाने वालों, भारतीय वैज्ञानिकों की मेधा शक्ति पर प्रश्न चिह्न लगाने वालों को प्रधानमंत्री ने आड़े हाथों लिया। भारतीय वैक्सीन के प्रभाव को लेकर अनैतिक रूप से फैलाये जा रहे भ्रम को भी प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के साथ धोखा बताया। भोले-भाले नागरिकों को वैक्सीन के संबंध में भ्रमित जानकारी देकर उन्हें वैक्सीन लगवाने से रोकना; उनके स्वास्थ्य अर्थात् जीवन के साथ खिलवाड़ बताया। ऐसे भ्रम फैलाने वाले से जनता को सतर्क रहने की अपील की। 

प्रधानमंत्री ने कोविड की दूसरी वेब में अस्पतालों की व्यवस्था, दवाओं का उपलब्धता, आक्सीजन की उपलब्धता, बेड की बढ़ी संख्या, टेस्टिंग लैब आदि की संख्या बढ़ाने के लिये युद्ध स्तर पर लगे रहे सभी संस्थानों को साधुवाद दिया। जिसमें रेलवे, वायुसेना, जल सेना, थल सेना आदि प्रासंगिक हैं। पहली लहर की भॉति इस बार भी गरीब नागरिकों की चिंता को दृष्टिगत रखते हुये दीपावली तक लगभग 8 महीने तक 80 करोड़ घरों को नि:शुल्क अनाज की व्यवस्था का संकल्प भी दुहराया। प्रधानमंत्री ने कहा कि पूरा प्रयास रहेगा कि कोई गरीब असहाय ख़ाली पेट ना सोये। वैक्सीनेशन के लिये युद्ध स्तर पर जागरूकता अभियान चलाये जाने की आवश्यकता पर भी प्रधानमंत्री ने ज़ोर दिया। 

इस भावनात्मक भाषण में प्रधानमंत्री ने सबका-साथ, सबका-विकास के मंत्र को पुन: दुहराया। पिछले १०० वर्षों में आधुनिक विेश्व में आयी इस सबसे बड़ी महामारी ने पूरे विश्व को त्रस्त किया है। परंतु, इस बार भारत की लड़ाई मज़बूत रही है।अस्पतालों के  इंफ़्रास्ट्रक्चर मजबूत  हो गये हैं। वैक्सीन का निर्माण युद्ध स्तर पर होने लगा है। भारत में वैक्सीनेशन की तीव्रता समूचे विश्व के लिये आश्चर्य की बात है। हमें गर्व है कि हम एक संघर्षशील राष्ट्र हैं। भारत जीतेगा-कोरोना हारेगा। 

(लेखक: डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी, मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स, इदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक की भूमिका में कार्यरत हैं)

Contact: +91-9993456731 Email: punit.hyd@gmail.com, www.punitkumardwivedi.com

Friday, 4 June 2021

विश्व पर्यावरण दिवस विशेष-पर्यावरण संरक्षण ही संजीवनी: डॉ. पुनीत द्विवेदी

 पर्यावरण संरक्षण ही संजीवनी: डॉ. पुनीत द्विवेदी 


- वृक्षों का संरक्षण जीवन के रक्षण हेतु नितांत आवश्यक।
- नदियॉ जीवन-दायिनी हैं। नदियों को पुनर्जीवित करना प्रमुख कर्तव्य।
- वायु प्रदूषण से प्राणवायु की रक्षा प्राणी मात्र के कल्याण के लिये संजीवनी। 
- पर्यावरण संरक्षण का संकल्प आजीवन संकल्प हो। 

पंचभूतों से बना यह शरीर और ब्रह्मांड दोनों पर्यावरण के प्रति सदा सजग रहने हेतु संकल्पित रहे हैं।जब-जब यह संकल्प डगमगाया है, सृष्टि अस्थिर हुयी है। प्रकृति ने रचना ही ऐसी की थी कि पर्यावरण और जीवन एक दूसरे के सम्पूरक रहेंगे। समय के साथ-साथ पर्यावरण की अनदेखी होती गयी। विज्ञान के चमत्कारों ने प्रकृति का विदोहन कर विकृति को जन्म दिया। परिणामस्वरूप, विभिन्न आपदायें जल-भूमि-वायु आदि के प्रदूषित होने के कारण विभत्स प्रदूषणों के स्वरूप में प्रकट हुयीं। शहरीकरण ने हरे-भरे जंगलों को मिटाकर कंक्रीट के जंगल पैदा कर लिये।जंगली-जीवों का घर उजाड़कर ब्रह्मांड के सबसे बुद्धिमान व समझदार कहे जाने वाले मानव समाज ने ईंट-पत्थर के जंगल बना डाले।कंक्रीट के जंगलों में सजावट के लिये वृक्षों को काटा जाने लगा और तरह-तरह के सुंदर फ़र्नीचरों एवं साज-सज्जा से घर को सजाया जाने लगा। वृक्षों के अविवेकपूर्ण कटाव से पर्यावरण में अस्थिरता आती गयी, प्रदूषण जन्मते गये,  फैलते गये और विज्ञान खुद की पीठ थपथपाते हुये पर्यावरण प्रदूषण से बचने के समाधानों को खोजता गया। जिसमें जल प्रदूषण से पीने योग्य पानी की रक्षा के लिये आर.ओ मशीन, हवा में फैले ज़हरीले वायु प्रदूषण से बचने के लिये मास्क या अन्य एयर प्योरिफायर मशीन की खोज और विकास की इबारत विज्ञान लिखता गया और बिना दूरगामी परिणामों की चिंता किये, स्वयं ख़ुश होता गया। वृक्षारोपण विषय पर स्कूलों में  निबंध-लेखन और भाषण प्रतियोगिताएँ तो आयोजित होती गयीं परंतु, वृक्षों को उतनी ही तेज़ी के साथ काटा भी जाने लगा। आक्सीजन कम पड़ गयी।बढ़ते प्रदूषण से प्रगतिशील नगरों के नागरिक एक घने धुँध के साये में एयर फ़िल्टर मॉस्क लगाकर जीने लगे।जीवन धीरे-धीरे असहाय होने लगा।आक्सीजन की कमी और दूषित प्राणवायु  ने फेंफडों को कमजोर कर निष्प्राण करना शुरु कर दिया। हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती गयी। परिणामस्वरूप कभी टी.बी तो अब कोरोना जैसी महामारी पिछले लगभग डेढ़ वर्षों से हमें सबक़ सिखा रही है।यक्ष प्रश्न है- क्या हम अब जाग जायेंगे? वृक्षारोपण कोई एक अभियान मात्र नहीं है जिसमें फ़ोटो खिंचवा कर समाज में स्वयं को पर्यावरण प्रेमी बताने की होड़ लगी रहती है।यह मानव एवं प्राणी मात्र के अस्तित्व से जुड़ा प्रश्न है।यह प्रासंगिक है कि वृक्ष कबहुँ न फल भखै, नदी न संचय नीर। परमार्थ के कारने साधुन धरा शरीर। अर्थात् ना वृक्ष कभी अपना फल खाता है, ना नदी कभी अपना जल पीती है। ये वो संत हैं जो परमार्थ के लिये जीते हैं, बढ़ते हैं, बहते हैं।यह जीवन का सबसे बड़ा त्याग है। निःस्वार्थ भाव से प्राणी मात्र के कल्याण के लिये अपना जीवन होम करना।कोरोना महामारी ने हमारी ऑखों के ऊपर का पर्दा हटा दिया है। आक्सीजन की कमी और फेंफडों के संक्रमण से अनगिनत जानें गयी हैं। कोई ऐसा नहीं होगा जिसके आस-पड़ोस में ऐसी घटना ना हुयी हो। भारत सरकार स्वच्छता अभियान चलाकर, नदियों को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रही है और पर्यावरण संरक्षण हेतु प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध  लगाकर गलोबल वार्मिग के ख़तरे से इस पृथ्वी को बताना चाह रही है। ये देश के विभिन्न कोनों में आ रही प्राकृतिक आपदायें चाहे वो भूकम्प हो, बाढ़ हो, तूफ़ान हो, महामारी हो, भूस्खलन हो, सूखा पड़ गया है; ये हमें कुछ बताना चाहते हैं। हमें कुछ संदेश देना चाहते हैं। विलुप्त हो रहे पौधे, पशु, पक्षी, जलचर आदि हमें उस आने वाली त्रासदी का संकेत दे रहे हैं जो पर्यावरण संरक्षण की ख़ामियों के कारण उत्पन्न होने वाली हैं और जिनका स्वरूप बड़ा ही विध्वंसक प्रतीत होता है।
आईये ! विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में आज संकल्पित हों कि पर्यावरण की सुरक्षा हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू होगा। आने वाली पीढ़ियों के लिये हम एक सशक्त एवं स्वच्छ पर्यावरण का निर्माण करेंगे। वृक्षारोपण कर प्रकृति को संरक्षित करेंगे। नदियों एवं बाग-वन का संरक्षण एवं संवर्द्धन अपनी ज़िम्मेदारी मानेंगे। हम आने वाले भविष्य को एक सुदृढ़ एवं सुरक्षित वातावरण प्रदान करेंगे। क्योंकि, हमें भी जीवन जीने के लिये एक अच्छा पर्यावरण हमारे पूर्वजों ने हमारे लिये संरक्षित एवं संवर्द्धित कर हमें प्रदान किया था।
  
( शिक्षाविद् लेखक डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी, मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक के रूप में कार्यरत हैं।) 




Wednesday, 26 May 2021

वायरस युद्ध के काल में बुद्ध की प्रासंगिकता -डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी

                                 वायरस युद्ध के काल में बुद्ध की प्रासंगिकता -डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी 


- बुद्ध का प्रभाव चीन-जापान-कोरिया-नेपाल-थाईलैण्ड-तिब्बत-श्री लंका आदि  देशों में भी पर्याप्त रहा है। 

-बुद्ध की सीख को नज़रअंदाज़ किया है वर्तमान विश्व ने।

- ये वायरस जनित युद्ध ‘बुद्ध की शिक्षाओं’ पर कुठाराघात है। 

- ‘बुद्धं शरणम् गच्छामि’ का भाव वर्तमान समाज में अदृश्य हो गया है।

- अहिंसा, विश्व प्रेम एवं बंधुत्व-भाव का हो रहा है लोप।

- पाश्चात्य शैली ने समाज का नाश करने की ठान ली है। 


‘बुद्धं शरणम् गच्छामि’ कहते, सुनते या पढ़ते ही मन अपार शांति की अनुभूति करने लगता है। बुद्ध का ध्यान करने मात्र से ही पंचभूतों से बने इस शरीर में अपार शांति एवं सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है। महात्मा बुद्ध ने अपने अंतर में इंद्रिय निग्रह के द्वारा परम् शांति की स्थापना की थी। विश्व शांति, प्रेम एवं करुणा की अप्रतिम मूर्ति माने जाते हैं महात्मा बुद्ध। विभिन्न देशों में अनवरत अथक यात्राओं के माध्यम से शांति, प्रेम एवं करूणा के संदेश से जगत को तृप्त करने का अद्भुत प्रयास करने वाले भगवान बुद्ध आज भी और सदा पूजनीय एवं प्रासंगिक रहेंगे। 


शांति प्रेम और करुणा ही जीवन के सार है। गौतम बुद्ध ने शांति की खोज में निरंतर भ्रमण एवं यात्रायें कीं। प्रेम के मर्म को जन-जन तक पहुँचाने का यत्न किया। असहायों, पशु-पक्षियों, निराश्रितों के लिये करुणा भाव को धरे विचलित हुये परंतु शांत रहे। जीवन की नश्वरता को जान चुके थे बुद्ध। एक ऐसा ठहराव उनके जीवन में आ चुका था जो स्वयं में परमेश्वर की अनुभूति करने जैसा था। उन्होंने अंगुलीमाल जैसे नृशंस हत्यारे डाकू को भी ठहराव प्रदान किया था। उनके शब्द ‘मैं तो ठहर गया तू कब ठहरेगा’ ने अंगुलीमाल सरीखे कईयों का कल्याण किया है। 


वर्तमान वायरस युद्ध काल में भी बुद्ध उतने ही प्रासंगिक हैं। हम बुद्ध के रूप को मानते हैं उनकी शिक्षाओं को नहीं। जबकि, बुद्ध ने राग, रूप, यौवन,विलासिता, राजसुख आदि का त्याग कर बुद्धत्व को प्राप्त किया था। बुद्ध की शिक्षाओं वाली करूणा अब दूर-दूर तक नहीं दीखती। बुद्ध की शिक्षाओं वाली शांति अपने अस्तित्व को ढूँढती अलाप कर रही है। बुद्ध की शिक्षाओं वाले प्रेम एवं बंधुत्व ने अब गलाकाट प्रतियोगिता का स्वरूप ले लिया है। समूचा विश्व वायरस से त्रस्त है। सबके मन एवं मस्तिष्क एक अज्ञात भय से भयभीत हैं। क्या बुद्ध अब युद्ध बन चुके हैं? विचारणीय अब यह है कि अब हम कौन हैं? हम किससे ग्रसित हैं? मानसिक वायरस से या शारीरिक वायरस से? क्या यह मंत्र आज भी उतना ही प्रासंगिक है ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ ।


भय-लोभ अंधकार हैं जिनसे उबरना ही बुद्ध तत्व को प्राप्त करना है। प्रेम-करूणा एवं विश्व बंधुत्व ही समाज के विकास के लिये एवं सृष्टि के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये आवश्यक है। बाक़ी सब कुछ नश्वर है। इस बुद्ध भाव का बोध प्राणी को मनुष्य से परमेश्वर बनाता है। मन-बुद्धि-विवेक को परम् वैभव तक पहुँचाता है। यही बोधि तत्व है और यही बोधिसत्व है। 


✍️ डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी, मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूशन्स, इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक की भूमिका में कार्यरत हैं।)

Thursday, 29 April 2021

भोगवादिता ने मानव संवेदनाओं की हत्या कर दी है- डॉ. पुनीत द्विवेदी

 भोगवादिता ने मानव संवेदनाओं की हत्या कर दी है- डॉ. पुनीत द्विवेदी 



- सेवाभाव का अभाव अस्पताल बने व्यापार के अड्डे।
- मानवता को शर्मसार कर तार-तार करती घटनाओं से भरे पड़े हैं समाचार पत्र।
- लाशों के व्यापार से आहत भारतीय समाज।
- असहायों से अनैतिक रूप से ऐंठे जा रहे हैं रूपये। 

भारतीय संस्कृति सभी छोटे-बड़े मत-संप्रदायों को अपने में समाहित कर उनका पालन-पोषण एवं संवर्द्धन करती आयी है। वसुधैव कुटुम्बकम् का भाव रखने वाला यह देश कब भोगवादी विचारों की ओर अग्रसर हो गया यह पता ही नहीं चला। वर्तमान समाज में  “वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिये मरे” का भाव लुप्त होता जा रहा है और ‘वही पशु प्रवृत्ति है जो आप-आप ही चरे’ का भाव पूरे चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मानव रूपी दानवों के बीच में रह रहे हैं हम लोग। विडंबना है कि भारत से चील-गिद्धों की जो प्रजाति विलुप्त होती जा रही है वो अब मानव शरीर में अपने उन्हीं संस्कारों के साथ अवतरित होने लगी है। 

कोरोना महामारी के इस संकटकाल में मनुष्य रूपी यह नरभक्षी गिद्ध-चील-कौवों की फ़ौज अपने स्वार्थ सिद्धि में लगी हुयी है। भारत की संस्कृति में कभी लाशों की व्यापार प्रचलित नहीं रहा है। परंतु आज के इस परिप्रेक्ष्य में प्रत्येक अस्पताल से लेकर मुक्तिधाम तक लोलुप भोगवादिता ने लाश पर पैसे कमा लेने का जो व्यापार शुरु किया है, वह अत्यंत पीड़ादायक है। इस मेडिकल आपातकाल के दौर में अस्पताल में बेड दिलाने से लेकर दवा-इंजेक्शन, आक्सीजन, एंबुलेंस एवं शववाहन आदि की कालाबाज़ारी ने मानवता को शर्मसार किया है। दिल्ली एम्स का चिकित्सक रेमडेशिवेर इंजेक्शन की कालाबाज़ारी करता हुआ धरा गया। इससे पहले भी लगभग रोज़ किसी ना किसी हेल्थकेयर से जुड़े व्यक्ति का नाम किसी ना किसी अपमानजनक कालाबाज़ारी के कृत्य से जुड़ा आ ही रहा है। समाचार पत्र, न्यूज़ चैनल चीख-चीख कर बता रहे हैं। 

मनुष्य का दैत्य स्वरूप अब दीखने लगा है। अब यह आभास होने लगा है कि पैसा कुछ भी करा सकता है। किसी की जान का सौदा भी, और किसी की लाश का सौदा भी। मरघट तक पहुँचाने वाले शववाहन, दाह करने वाले संस्कारी भी मुख्य रूप से लाशों के व्यापार में लग गये हैं। अस्पतालों की लूट ने धरती पर देवता के स्वरूप माने जाने वाले ‘चिकित्सकों’ की भूमिका पर प्रश्नचिह्व लगा दिया है। 

आवश्यकता है, एक ऐसे क़ानून की जो सजा दिला सक पाये ऐसे कुकृत्यों में लिप्त सफ़ेदपोश चीलों को। ताकि किसी असहाय की मजबूरी का फ़ायदा कोई चालबाज़ ना उठा पाये।आवश्यकता है उस नैतिक शिक्षा का, जो जीवों पर दया करने का पाठ पढ़ाया करती थी। सहकारिता के भाव को जगाती थी। सब कुछ व्यापार ही नहीं होता है कुछ प्यार भी और व्यवहार भी होता है। लाशों के साथ यह व्यापार मनुष्यत्व को कठघरे में खड़ा कर रही है। अरे गिद्धों !  कुछ तो सेवा का भाव रखो। भगवान तुम्हें कभी माफ़ नहीं करेगा। 

[ ✍️ डॉ.पुनीत कुमार द्विवेदी (शिक्षाविद) मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक की भूमिका में कार्यरत हैं।]



Wednesday, 28 April 2021

महामारी प्रबंधन हित अनवरत प्रयास वर्तमान समय की माँग- डॉ० पुनीत द्विवेदी

                           महामारी प्रबंधन हित अनवरत प्रयास वर्तमान समय की माँग- डॉ० पुनीत  द्विवेदी 


• महामारी प्रबंधन विषय के रूप में पढ़ाया जाये।

• लगभग 100 वर्षों में महामारी का आगमन होता है जो विनाशक होता है। 

• स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं को मज़बूत बनाने का लक्ष्य साधना आवश्यक। 


प्रबंधन व्यवस्थित जीवन का एक बड़ा ही महत्वपूर्ण अंग है। शारीरिक संरचना के प्रबंधन से लेकर जीवन की दिनचर्या तक सब-कुछ प्रबंधन पर ही निर्भर करता है। देखा गया है कि आपदा प्रबंधन पर सरकार का ध्यान रहता है परंतु महामारी प्रबंधन पर कोई महत्वपूर्ण ज़ोर नहीं दिया गया है और इसे आपदा प्रबंधन का ही हिस्सा मान लिया गया है। जबकि महामारी प्रबंधन एक अनवरत प्रयास के रूप में अपेक्षित है। 


ज्ञातव्य है कि महामारी एक निश्चित अंतराल पर प्रकट होती है और कुछ वर्षों तक जिसका प्रभाव देखने को मिलता है। व्यवस्था यह होनी चाहिये कि अध्ययन करके, जैसे मौसम का पूर्वानुमान लगाया जाता है; ठीक वैसे ही महामारी के पूर्वानुमान से संबंधित शोध एवं रणनीति पर काम करना चाहिये। मूलतः महामारी स्वास्थ्य से संबंधित होती है। अत: स्वास्थ्य सुविधाओं पर समुचित राशि व्यय कर स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत  सुविधाओं को मज़बूत बनाने का लक्ष्य रखा जाना चाहिये। जिससे कि संक्रमण पर रोक लगाकर होने वाली मृत्यु  की संख्या को कम किया जा सके जिससे अस्थिरता का वातावरण अथवा मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात ना बनें। 


अध्ययन के द्वारा पूर्व  की कुछ बड़ी महामारियों ने देश-विदेश और समाज पर जो प्रभाव डाला है वह दृष्टांत के रूप में रणनीति बनाने में सहायक सिद्ध हो सकती है। महामारी का यदि इतिहास देखें तो यह  देखा गया है कि दुनिया में हर 100 साल पर 'महामारी' का प्रकोप हुआ है। वर्ष 1720 में दुनिया में द ग्रेट प्लेग ऑफ़  मार्सेल फैला था।जिसमें  लगभग 1 लाख लोग काल के गाल में समाहित हो गये थे। पुन: 100 वर्ष बाद सन् 1820 में एशियाई देशों में हैजा का प्रकोप रहा। इस महामारी में भी लगभग एक लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इसी क्रम में सन् 1918 से 1920 में दुनिया ने स्पेनिश फ्लू के क़हर को झेला। इस बीमारी ने उस समय लगभग 5 करोड़ लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। और अब फिर 100 साल बाद दुनिया पर आई कोरोना की तबाही, जिसकी वजह से लगभग पूरी दुनिया में लॉक डाउन है और वर्ष 2020-21 में हम इसके दुष्परिणाम देख रहे हैं। अर्थात् 100 वर्षों में एक बार महामारी का आना लगभग तय है और इसके अनुरूप रणनीति बनाना वर्तमान एवं आगामी सरकारों का कर्तव्य है। 


ध्यान रहे, मानव संसाधन सबसे बड़ी पूँजी है। भारत की बड़ी जनसंख्या भारत पर भार नहीं एक अवसर प्रदान करती है। मानव संसाधन का सही उपयोग राष्ट्र पुनर्निर्माण के लिये अत्यावश्यक है। अकुशल प्रबंधन के चलते देश की नींव कमजोर हो रही है जिसपर देश का भविष्य टिका हुआ है। आवश्यकता है वैचारिक आन्दोलनों का। जो विकास के मार्ग को प्रशस्त करे ना कि विकास में बाधक बनें। समाज के सभी वर्गों का एकजुट होकर राष्ट्र पुनर्निर्माण के कार्य में स्वयं को लगाने का लक्ष्य होना चाहिये। महामारी के समय, महामारी के पश्चात बिगड़े आर्थिक हालात को सुधारने का ज़िम्मा मात्र सरकारों का नहीं अपितु समस्त नागरिकों का भी है। 


‘उत्पत्ति के साथ नाश और विकास के साथ ह्रास’ प्रकृति का नियम है। प्राकृतिक संसाधनों का अविवेक पूर्ण विदोहन भी महामारी को न्योता देता है। अत: औद्योगीकरण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का भाव भी मन में रहे। पंचभूतों के संरक्षण से ही मानव सभ्यता और प्राणी मात्र का कल्याण संभव है। हम नहीं कर पा रहे हैं अत: प्रकृति को स्वयं बैलेंस करना पड़ रहा है, जो भयावह है और इसके कारक हम स्वयं ही हैं। 


(लेखक डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी  मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स, इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक के रूप में कार्यरत हैं)








मर्यादित राष्ट्रमंगल भाव को लोकमंगल हित जनमानस तक पहुँचाते श्रीराम- डॉ. पुनीत द्विवेदी


मर्यादित राष्ट्रमंगल भाव को लोकमंगल हित जनमानस तक पहुँचाते श्रीराम- डॉ. पुनीत द्विवेदी 

• सामाजिक समरसता के प्रणेता रहे हैं श्री राम।
• मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम त्याग और संघर्षों के पर्याय रहे हैं। 
• वसुधैव कुटुम्बकम् के प्रचारक रहे हैं श्री राम। 
• लोक कल्याण एवं प्राणी मात्र के कल्याण के लिये निज जीवन अर्पित किया श्रीराम ने। 

मर्यादा पुरुषोत्तम लोक कल्याण के भाव को जन-जन तक पहुँचाने वाले श्रीराम भारतीय और विश्व समाज में पूजित हैं। ज्ञातव्य है कि ‘त्याग ही राम की महिमा है’ और राम त्याग के पर्याय। जन्म से महापरिनिर्वाण तक श्री राम का जीवन त्याग एवं संघर्षों का जीवन रहा है। जीवन के प्रत्येक क्षण में त्याग भाव के साथ संघर्षों में मनुष्य जीवन को महान उदाहरण बनाकर लोक कल्याण के द्वारा राष्ट्र को परंवैभव की ओर अग्रसर करने का मार्ग श्री राम ने प्रशस्त किया है। 

मूल्यों के साथ जीवन प्रबंधन के द्वारा कैसे लोकमंगल के भाव को प्रमुखता दी जा सकती है, इसे दशरथ नंदन राजा राम ने चरितार्थ किया है। जीवन के प्रत्येक पड़ाव पर मनुष्य जीवन में नैतिक मूल्यों की प्रासंगिकता के पर्याय रहे हैं श्री राम। विभिन्न विचारधाराओं के साथ सामन्जस्य स्थापित कर जगती के कल्याण के लिये अपने जीवन को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करने वाले जन-नायक रहे हैं श्री राम। 

ज्ञान और शील के माध्यम से विश्व कल्याण एवं राष्ट्रीय  एकता के लिये एक तपस्वी की भाँति भारतवर्ष में अलख जगाने  की शक्ति हैं श्री राम। जिन्होंने बाल्यकाल से ही समाज कल्याण हित अपने जीवन को राष्ट्र के नाम समर्पित कर हम सबके प्रेरणापुरुष बने। श्री राम का जीवन प्रत्येक भारतीय एवं विश्व समुदाय के लिये भी सदा प्रासंगिक रहा है और रहेगा क्योंकि श्री राम ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के भाव को पूरे विश्व में प्रचारित-प्रसारित करने के लिये कृतसंकल्पित रहे हैं। 

तत्कालीन हिंदु समाज को एकजुट कर सुमंगलम् के लक्ष्यों को साध कर समाज के सुदृढ़ समायोजन के कारक रहे हैं श्री राम। 
समाज में उपेक्षित वर्ग के कल्याण हित, उनके जीवन स्तर को सुदृढ़ और सुंदर बनाने हित अपने जीवन में संघर्षों को चुनकर आगे बढ़ने वाले समाज सुधारक रहे हैं श्री राम। 

भील, केवट, अहल्या, बानर, गिद्ध, राक्षस अर्थात् मनुष्य ही नहीं अपितु प्राणी मात्र के कल्याण के लिये अपने जीवन को अर्पित कर देने वाले महापुरुष रहे हैं श्री राम। माता शबरी के जूठे बेरों का सेवन कर, निषाद राज गुह को हृदय से लगाकर, केवट के प्रेम से विह्वल हो उपेक्षित हिंदु भील समुदाय को मुख्य धारा से जोड़ने के लिये सामाजिक समरसता के प्रणेता रहे हैं श्री राम।

आईये, रामनवमी के पावन अवसर पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन से सीख लेकर वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों को सम्यक् और संस्कारित बनायें। लोक मंगल ही सनातन हिंदु समाज की विशेषता है जिसमें जननायक, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जीवन सदा प्रेरणादायी रहा है और रहेगा। 

( लेखक डॉ.पुनीत कुमार द्विवेदी (शिक्षाविद्) मॉडर्न  ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूशन्स, इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक की भूमिका में कार्यरत हैं)




 

महामारी का तांडव: ख़ुशमिज़ाज होना ही बेहतर इलाज- डॉ. पुनीत द्विवेदी

महामारी का तांडव: ख़ुशमिज़ाज होना ही बेहतर इलाज- डॉ. पुनीत द्विवेदी 


- ख़ुश रहने से स्ट्रेस लेवल कम होता है और आक्सीजन की मात्रा बढ़ती है। 
- म्यूज़िक सुनना, मंत्रोच्चार करने से भी स्ट्रेस लेवल कम किया जा सकता है। 
- नकारात्मक खबरों एवं अफ़वाहों से दूरी बनायें।
- स्वयं को व्यस्त रखने के लिये पुस्तकें पढ़ें, गीत, कविता कहानी लिखें, पेंटिंग करें। 
- कोविड के लिये सुझाई गई दवाओं का सेवन करते रहें। 

अक्सर देखा गया है कि बीमारी होते ही पेशेंट के साथ परिवार के सभी लोग पैनिक हो जाते हैं। पैनिक होने से भय का वातावरण बनता है। भय के वातावरण से शरीर का श्वसन तंत्र प्रभावित होता है एवं शरीर में आक्सीजन की कमी होने लगती है। दूसरी तरफ़ ख़ुशमिज़ाज व्यक्ति का ऑक्सीजन लेवल शरीर की आवश्यकता के अनुकूल रहता है। 

परिवार के एक व्यक्ति के संक्रमित होने और बाक़ी परिवार जनों के अंदर बढ़ते भय के कारण उनके भी संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाती है। हमें यह ध्यान रखना है कि कोरोना वायरस का संक्रमण अलग-अलग शरीरों पर अलग-अलग प्रकार से प्रभाव दिखा रहा है। कोई आवश्यक नहीं कि सबको हॉस्पीटल में एडमिट करना ही पड़े। यह भी देखा गया है कि बहुत सारे संक्रमित मरीज़ घर पर भी आईसोलेट होकर ठीक हो गये हैं। ख़ासकर चिंता उन संक्रमित मरीज़ों के लिये अधिक है जो अन्य किसी गंभीर बीमारी जैसे कैंसर, किडनी की समस्या, फेंफडे की समस्या, डायबिटीज़, हृदय रोग आदि से ग्रसित हैं। परंतु, यह देखा गया है कि ऐसे भी बहुत सारे मरीज़ स्वस्थ होकर घर जा रहे हैं। 

संक्रमण के बाद होम आईसोलेशन में कई ऐसी होम रेमिडी भी हैं जिनके माध्यम से संक्रमण पर विजय प्राप्त किया जा सकता है। जैसे दिन में तीन से पाँच बार गर्म पानी में अज्वाईन डालकर भाप लेना जिससे कि फेंफडे में बलगम डायल्यूट होता रहे और कफ से जकड़न ना हो; जिससे सॉस लेने में दिक़्क़त ना हो। गर्म पानी से गारगिल (कुल्ली) करते समय पानी में हल्दी मिलाने से लाभ होगा। नाक में अणु तैल या सरसों का तेल डालें। ऑक्सीजन की समस्या लगने पर पेट के बल लेटें। योग-प्राणायाम से भी ऑक्सीजन का लेवेल आसानी से बढ़ाया जा सकता है और इससे रोक प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। यह ध्यान रहे कि साथ ही साथ शासन द्वारा दिये गये अन्य बचाव हित सुझाओं का ध्यान रखते हुये, सुझाई गई दवाओं का नित्य समय पर सेवन करें। भोजन भर पेट करें। भोजन में फल-सब्ज़ियॉ, दूध आदि का समुचित सेवन करें। 

शोध में देखा गया है कि ख़ुशमिज़ाज व्यक्ति का आत्मबल बढ़ा  रहता है और वह आसानी से किसी रोग पर विजय प्राप्त कर लेता है। अत: आइसोलेशन में भी ख़ुशमिज़ाज रहें। अच्छा साहित्य, पुस्तकें पढ़ें। पेंटिंग इत्यादि में यदि अभिरुचि है तो पेंटिंग्स बनायें। संगीत सुनें । कहा जाता है कि संगीत में भी रोग को हीलिंग करने की क्षमता होती है। इससे मन ठीक और मन ठीक तो बीमारी ठीक हो जाती है। यह ध्यान रहे कि प्रत्येक संक्रमण का एक समय काल होता है उसके पश्चात उसका प्रभाव क्रमश: कम होता जाता है। हमें उस समय की प्रतीक्षा करते हुये सभी मेडिकल प्रिसक्रिप्शन्स लेते रहना है। 

हमारा आत्मविश्वास हमें बीमारी पर जीत प्रदान करता है। एवं हमारी ख़ुशमिज़ाजी के कारण हमारे साथ-साथ हमारे परिवार जन एवं अन्य पीड़ित मरीज़ों का भी आत्मविश्वास बढ़ता है और वो भी शीघ्र रीकवर होने लगते हैं। नकारात्मक विचारों एवं समाचारों को स्वयं से दूर रखें। यह आपको मानसिक रूप कमजोर करते हैं जिससे प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने लगती है। सनातन धर्म में मंत्रोच्चार  से आत्मशुद्धि एवं आत्मविश्वास बढ़ाने के उद्धरण भी देखने को मिलते हैं। अत: उपयुक्त मंत्रों के उच्चारण से भी श्वसन तंत्र को मज़बूत किया जा सकता है।

कुल मिलाकर आपको सकारात्मक रहना है। सकारात्मकता ही विजय है। स्वयं को ख़ुश रखकर हम अपने और अपने परिजनों का आत्मविश्वास बढ़ा सकते हैं और इस महामारी पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। अत: ख़ुश रहें। स्वस्थ रहें। मस्त रहें। 

(लेखक डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स, इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक की भूमिका में कार्यरत हैं।)







 

‘कैरियर हो या कोविड’ सकारात्मकता ही जीतती है- डॉ. पुनीत द्विवेदी


‘कैरियर हो या कोविड’ सकारात्मकता ही जीतती है- डॉ. पुनीत द्विवेदी 


वैसे तो आज के संदर्भ में दुनियॉ का सबसे निगेटिव शब्द बन गया है ‘पॉज़िटिव’ होना। जहॉ पॉज़िटिव होना सकारात्मकता का प्रतीक हुआ करता था; कोरोना महामारी ने पॉज़िटिव शब्द को नकारात्मकता का प्रतीक बना दिया है। लेकिन फिर भी मन से पॉज़िटिव रहकर वायरस की इस बीमारी से बचा जा करता है। करियर और कोरोना की बीमारी दोनों सकारात्मक एटीट्यूड से ठीक होते हैं। करियर के प्रति सजक व्यक्ति का एटीट्यूड हमेशा सकारात्मक रहता है। चेहरे के भाव सकारात्मक रहते हैं। आंतरिक सोच सकारात्मक रहती है। सब्जेक्ट नॉलेज पर पकड़ भी विषषवार सकारात्मक बनाती है। अत: सकारात्मकता अंतत: सर्वदा लाभकारी होती है। 

प्रश्न उठता है सकारात्मक क्यों रहें? सकारात्मक होना बड़ा ही आसान है। सकारात्मकता गिरे हुये मनोबल को पुन: शक्ति एवं ऊर्जा प्रदान करती है और व्यक्ति विजय प्राप्त करता है। करियर की चिंता और कोरोना कहीं ना कहीं हमारी आत्म़शक्ति को क्षीण करने का प्रयास करते हैं। सही डायरेक्शन में प्रयास व सही इलाज लेने पर सफलता मिलती है। अर्थात् अपनी ओर से प्रयत्न करना, प्रयत्न करते रहना नितांत आवश्यक है। एक श्लोक में कहा गया है कि “प्रयत्नेन योग्या सुयोग्या भवंति” अर्थात् ‘प्रयत्न करने से योग्य व्यक्ति और सुयोग्य बनता है।’

कोरोना काल में अपनी शिक्षा पूर्ण करने वाले विद्यार्थियों को यह ध्यान रखना है कि इस महामारी काल में किस प्रकार हम अपनी योग्यता को और निखार सकते हैं। जैसे कि देखने में आ रहा है कि बड़े-बड़े कारपोरेट हाऊसेस, कंपनियों ऑनलाइन मोड में आ चुकी हैं। अर्थात् वर्क फ़्रॉम होम की अवधारण मूर्त रूप ले चुकी है। जहॉ वर्चुअली काम कर सक पाना संभव हैं, वहॉ योग्य वर्चुअल मैनपॉवर को रोज़गार मिल रहा है। यह समय बदलाव का है। नई व्यवस्था को सीखने-समझने का है।स्वयं को उस व्यवस्था को अनुरूप तैयार करने एवं सफल होने का ये समय है। अत: पूरे मनोयोग से नई व्यवस्था के अनुरूप अपनी योग्यता एवं कौशल विकास को महत्वपूर्ण भूमिका में रखना आवश्यक है एवं उक्त निहित पूर्ण तैयारी भी अपेक्षित है। 

ठीक ऐसे ही कोरोना काल में पैनिक होना सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। जिसके कारण पूरे विश्व में ‘पॉज़िटिव’ नकारात्मकता फैल रही है। वैश्विक बीमारी कोरोना को लेकर अनेक भ्रांतियों समाज में फैल गयी हैं। सोशल मीडिया में तरह-तरह के निराधार बातों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के कारण समाज में पैनिक क्रियेट किया जा रहा है। महामारी के इस काल में ‘शहरी-नक्सलवाद’ के हौसले भी बुलंद हैं। इस महामारी के काल में राजनीतिक दलों की आपसी नोंक-झोंक पीड़ितों की पीड़ा बढ़ाने के कारण बन रहे हैं। अर्थात् समाज में सकारात्मकता का अभाव देखने को मिल रहा है। विभिन्न राजनीतिक गुटों के बीच का आपसी वैमनस्य समाज के पतन का कारण बनता जा रहा है। आवश्यकता है एकजुट होकर सकारात्मक परिवेश के निर्माण की। जिसमें समाज के प्रत्येक वर्ग का सहयोग अपेक्षित है। 

चिकित्सक का सकारात्मक स्वभाव मरीज़ के आत्मविश्वास को प्रबल करता है, परिवार जनों का सकारात्मक व्यवहार पीड़ित को शक्ति प्रदान करता है, आस-पास का सहयोगी परिवेश पीड़ित के मनोबल को बढ़ाता है, प्रशासन का कुशल प्रबंधन पीड़ित समाज में  विश्वास बढ़ाता है, सकारात्मक  चर्चायें, सकारात्मक प्रबंधन, टीम भाव, सहयोग की भावना, अनर्गल बयानबाज़ी एवं सूचनाओं पर प्रतिबंध, नकारात्मक समाचारों के प्रसारण पर रोक, सोशल मीडिया का विवेकपूर्वक सही उपयोग समाज में सकारात्मक परिवेश बनाने में सहायक हैं। विडंबना है और खेद भी कि संसाधनों  की कमी से समूचा विश्व जूझ रहा है। आवश्यकता है समाज को एकजुट होकर इज़रायल देश की भॉति कोरोना से लड़ने की। विचारों की सकारात्मकता ही विजय की कुंजी सिद्ध होगी, चाहे  समस्या करियर की हो या कोरोना की। चुनाव आपको करना है। 

[लेखक डॉ.पुनीत कुमार द्विवेदी (शिक्षाविद) मॉडर्न  ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स, इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक की भूमिका में कार्यरत हैं।]








 

महामारी के इस संकटकाल में प्रबल होती देश विरोधी ताक़तों से सावधान- डॉ. पुनीत द्विवेदी

हमारे लिये महत्वपूर्ण राष्ट्र होना चाहिये। संकटकाल में जिस प्रकार वाह्य विदेशी ताकतों के साथ-साथ आंतरिक कलहकारी शक्तियॉ आपदा को अवसर की समझ में सक्रिय हुयी हैं उससे देश की प्रतिरोधक क्षमता और कमजोर होगी। यह समय ऐसा है कि जब आपसी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ‘राष्ट्रनीति’ पर काम करना चाहिये। वैश्विक महामारी कोरोना के दुष्प्रभाव को कम करने के लिये सकारात्मक ऊर्जा के साथ टीम वर्क पर ध्यान देना आवश्यक है। इसमें सरकार और विपक्ष दोनों का समान उत्तरदायित्व बनता है। आपदा प्रबंधन हित पक्ष-विपक्ष अन्य मोर्चों को एकसाथ एकजुट होकर राष्ट्र की संप्रभुता का संरक्षण करना होता है। जनता की रक्षा हित संसाधनों की उपलब्धता पर सभी दलों का समान ध्यान होना चाहिये। इज़रायल जैसे देशों का अद्भुत उदाहरण मिलता है , जहॉ कोरोना महामारी से देश की रक्षा करने के लिये सरकार और विपक्ष दोनों का एकजुट होकर निर्णय लेना, जिससे कि आज इज़रायल ‘मास्क फ़्री कंट्री’ के रूप में जाना जाने लगा है। 


भारत केन्द्र और राज्य की राजनीति के साथ एक सशक्त लोकतंत्र के रूप में पूरे विश्व में जाना-पहचाना जाता है। इस महान संप्रभु राष्ट्र ने विश्व समुदाय को सदा प्रेरित किया है और आवश्यकता पड़ने पर पालन-पोषण भी किया है। परंतु वैश्विक नीतियों का प्रभाव या दुष्प्रभाव कहें या सशक्त नेतृत्व की कमी के कारण पूर्व के लगभग ७ दशकों तक भारत उपेक्षित रहा। वर्तमान नेतृत्व ने उपलब्ध संसाधनों के समुचित उपयोग, नई नवाचार की नीतियों, कुशल एवं प्रभावी सामरिक दृष्टिकोण एवं विदेश नीति के माध्यम से कम समय में देश को और अधिक सशक्त किया है। भारत के आधारभूत संरचना का चहुंमुखी विकास विगत ५-६ वर्षों में तेज़ी से बढ़ता हुआ दिखा है।नोटबंदी में विदेशी शत्रुओं के ख़ज़ाने ख़ाली किये हैं, तथाकथित NGOs पर कसी नकेल ने भारत में आतंकवादी गतिविधियों को प्रायोजित करने वाले स्रोतों को बंद किया है, धारा ३७०और नागरिकता क़ानून ने क्रमश: कश्मीर की समस्या का समाधान किया है एवं बांग्लादेशी घुसपैठ के मंसूबों पर पानी फेर दिया है, कश्मीर के विस्थापितों का एक लंबी प्रतीक्षा के पश्चात घर वापसी हुयी है,वहीं NRC ने ग़ैर भारतीय नागरिकों पर सिकंजा कसा है। यह भी देखा गया है कि पड़ोसी दुश्मन को भी समय-समय पर अब सबक़ सिखा ही दिया जाता है; कभी सर्जिकल अटैक से तो कभी डोकलाम के मुद्दे पर। 


वास्तव में भारत अब पहले का वह दब्बू देश नहीं रहा जो किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर मात्र सहभागिता की दृष्टि से देखा जाता था जिसके मत, विचार और विषय का कोई महत्व नहीं होता था और ना ही कोई देश महत्व देना चाहता था। भारत मात्र एक मार्केट था जहॉ सबको व्यापार करना था और भारत को दबा कर रखना था। वर्तमान महामारी के प्रथम चरण में भारतीय केन्द्रीय सरकार के लॉकडाऊन का असर कोरोना पर भारत की एक बहुत बड़ी जीत के रूप में विश्व समुदाय ने माना था और भारत की वाहवाही हुयी थी। स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की कमी भारत जैसे विकासशील देशों में प्राय: सामान्य बात है। परंतु , भारत की दूरदर्शिता कहें या नेतृत्व की कुशलता; लॉकडाऊन की अवधि में स्वास्थ्य संबंधी उन व्यवस्थाओं का विकास अत्यंत ही द्रुतगति हुआ; जिसके बारे में सोच सक पाना भी मुश्किल था। चाहें वो वेंटिलेटर्स का निर्माण हो या मॉस्क और सेनेटाईजर्स, दवाओं या पी.पी.ई किट्स। भारत ने पूरे आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भर भारत की और कदम बढ़ाना प्रारंभ कर दिया था। चुनौतियाँ आती गईं, समाधान होते गये, भारत रूका नहीं चलता रहा, बढ़ता रहा। कोरोना रोकथाम संबंधी केन्द्र की नीतियों का सभी राज्यों ने पालन किया और जिसका परिणाम सकारात्मक रहा। हमें कम हानि हुयी। 


किसी भी देश की रीढ़ उस देश की अर्थव्यवस्था होती है जो कृषि, उद्योग, व्यापार, वाणिज्य, सेवाओं आदि पर निर्भर करती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय लॉकडाऊन अर्थव्यवस्था के लिये घातक सिद्ध होती, क्योंकि पिछली बार के नुक़सान की भरपाई अभी तक हुयी नहीं कि कोरोना महामारी का दूसरा विनाशक दौर आ पहुँचा।अब ज़िम्मेदारी राज्यों की थी। भारत ही क्या विश्व के सबसे ताकतवर देशों की भी अर्थव्यवस्था, चिकित्सा व्यवस्था, शासन- प्रशासनिक व्यवस्थाएं सब चरमरा गई हैं। ध्यान रहे यह एक वैश्विक महामारी है जो वैश्विक समस्या है। इसके निदान हेतु सबका सहयोग नितांत आवश्यक है। संकट की इस घड़ी में अपने नागरिकों एवं विश्व समुदाय की रक्षा के लिये भारतीय वैज्ञानिकों ने वैक्सीन पर शोध कर सबसे कम मूल्य में वैक्सीन बनाकर विश्व समुदाय को अर्पित किया।‘वसुधैव कुटुम्बकम’ हमारी विशेषता है। आज समूचा विश्व भारत की तरफ़ आशा भरी निगाहों से देख रहा है। सबको पता है भारत सेवक है और सेवा करेगा। क्योंकि सेवा हमारी संस्कृति है। 


विडंबना है, देश की आंतरिक सुरक्षा जो कि ‘शहरी नक्सलवाद’ से प्रभावित है। संकट के इस काल में देश के साथ, देश के लिये खड़े होने की अपेक्षा कुछ देश विरोधी आंतरिक ताक़तें देश को कमजोर करने में लगीं हैं। चीन समर्थित वामपंथ इस समय देश में असुरक्षा एवं अस्थिरता का माहौल बनाने से नहीं चूक रहा। ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा ध्यान वर्तमान समय में देश-समाज और हमारे लोगों की सुरक्षा करने का है। इस समय एकजुट होकर सरकार- शासन- प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जनसेवा करने का है।मानव सेवा ही माधव सेवा है। ध्यान रहे, हमें सरकार को कोसने के अन्य कई अवसर मिलेंगे अगर हम जीवित बचे रहे तो। 


[  लेखक डॉ पुनीत कुमार द्विवेदी (शिक्षाविद्)  मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स, इंदौर में प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक की भूमिका में कार्यरत हैं]