Friday, 20 November 2015

पूर्णांक की ओर- बचकाना

मानव जीवन मिलना पूर्व जन्मों के सत्कर्मों का परिणाम है,जैसा कि हम भारतीयों की मान्यता है। मानव जीवन प्राप्त करने के उपरान्त जीवन की विभिन्न अवस्थाओं से होता हुआ मनुष्य परम् गति को प्राप्त करता है। ये विभिन्न अवस्थाएं जीवन के अद्भुत-उत्तम-नैराश्य-कष्ट-क्षोभ-हर्ष आदि भावों के अनुभवों को संयोजित करते अपनी यात्रा पूरी करती है।

जीवन मूल्यों में कमी-बेशी इस दौरान सामान्य व्यवहार माना जा सकता है, क्योंकि
मनुष्य का पूर्ण होना काल्पनिक है। जबतक पूर्णांक की प्राप्ति न हो उक्त यात्रा अपूर्ण मानी जाएगी।

आयु का पूर्णता से कोई संबंध नहीं। एक अधेड महिला या पुरुष की तुलना में एक युवा या युवती अधिक पूर्ण हो सकते हैं। किसी अधिकारी की अपेक्षा एक अदना सा कर्मचारी बौद्धिक स्तर पर उसे मात दे सकता है। पूर्णता का पूर्णांक स्तर पूर्णरूपेण बौद्धिक परिपक्वता पर निर्भर करता है। बौद्धिक परिपक्वता का होना तथा बौद्धिक स्तर पर परिपक्व दिखना इन दोनों में जमीन आसमान का अन्तर होता है। जो मनुष्य,मनुष्य से प्रेम नहीं कर सकता वह प्रकृति की बनाई किसी भी चीज (पेड,पौधे,पशु,पक्षी) से प्रेम नहीं कर सकता।

बढती उम्र के साथ हम परिपक्व दिखना चाहते हैं ,परन्तु होते नहीं।बडा होकर भी हम बच्चा बनना चाहते हैं ,परन्तु संभव नहीं हो पाता। अपने जीवन काल में विभिन्न प्रकार के सामाजिक, व्यावसायिक दायित्वों में बंधा अपूर्ण मनुष्य अपनी सुविधानुसार विभिन्न काल एवं परिस्थितियों के प्रभाववश विभिन्न रूपों में स्वयं को ढालकर या डालकर अपने ढोंगी ,बहुरूपिए स्वभाव को एक पहचान दिलाने के प्रयास में पूर्णांक की प्राप्ति से वंचित रह जाता है।

आइए ! 'पूर्णांक' की ओर चलें।

(लेखक के विचार स्वयं के जीवन के विशेष क्षणों में उपजे विचार हैं)

Wednesday, 18 November 2015

मणिकंकर नय्यर बनाम सुतियापा

राजनीतिक सुतियापा पान में कत्था और चूना जितना ही महत्वपूर्ण होता है, यह जान लिया है। लाल रंग की पिक थूककर मातृभूमि पर गंदगी फैलाना तथा माँ भारती के पुनीत ऑचल की मर्यादा को आहत करना, आज की तारीख में और भविष्य में कभी भी ,सबसे बडा सूतियापा कहा जाएगा।

देश की आबरू से खिलवाड करना मणिकंकर नय्यर जैसे सूतियाओं की आदत सी बन गई है। आपको बता दें -कि मणिकंकर नय्यर देश में उपलब्ध सूतियाओं की एक प्रमुख दूषित नस्ल है, जिसमें राष्ट्रद्रोह कूट-कूट कर भरा है।

दुश्मन देश की धरती पर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का जिक्र करना या उन्हें करने की मंसा रखना इस दूषित नस्ल की प्रमुख विशेषता है। 'कुत्ते की दुम टेढी' वाले प्रसंग का जिक्र करके बेचारे पालतू और वफादार कुत्तों के समक्ष "असहिष्णुता" का परिचय देना मुझे कतई पसंद नहीं।

अतः आपसे निवेदन है कि इन (मणिकंकर नय्यर) जैसे राष्ट्रद्रोही कुत्तों के प्रति निश्चित ही असहिष्णुता का भाव रखें और बेचारे पालतू, वफादार कुत्तों से सहिष्णुता बरतें।यही वास्तविक राष्ट्रभक्ति होगी।

(-लेखक किसी भी देश की तत्कालीन राजनीतिक घटना से प्रभावित नहीं हैं)

मनुवादी सेकुलरिज्म

अभिवादन ..... !

मनुष्य (मनु-सतरूपा) का सेक्युलर व्यक्तित्व क्या उसके जीवन की एक अवस्था है? सेक्युलर होना क्या एक मनोवैज्ञानिक रोग है? वह कौन है, जो सेक्युलर नहीं है? मनुष्य को सेक्युलर होना या नहीं होना चाहिए? क्या सेक्युलर माता-पिता सेक्युलर संतानों को जन्म देती है? यदि हाँ, तो हर पहलवान का बेटा पहलवान क्यों नहीं होता? या कि सेक्युलर होने से तात्पर्य उस बिगडैल संतति से है जिनके माता-पिता तो मनुवादी थे पर वह...? सबकुछ कन्फ्यूजिंग है।

बतादें कि, पूरी विकिपीडिया खंगालने के पश्चात भी पंथनिरपेक्ष/धर्मनिरपेक्ष अथवा सेकुलरिज्म पर उतना मसाला नहीं मिला जितनी मीडिया प्रोड्यूस कर प्रसारित कर रही है। यह राजनीतिक षड्यंत्र अब समझ में आया। राजनेता या राजनीतिक दल जनता को उन्हीं इश्यू पर गुमराह कर सकते हैं जिनमें आवश्यक मात्रा में लिटरेचर उपलब्ध ना हो। विकीपीडिया की असमर्थता देखते ही मुझे यह शक हुआ कहीं विकिपीडिया भी तो सेकुलर नहीं हो गयी।

(लेखक के विचार स्वयं के जीवन के विशेष क्षणों में घटित हुयी विभिन्न अनुभूतियों का दुष्परिणाम है।)

Tuesday, 17 November 2015

कृतज्ञता



श्री अरिहंत कृपा हुयी बना ये सुंदर योग।
नेमनाथ जी ने किया परहित आत्म प्रयोग।।

मुनिश्री-साध्वी-साधिका-प्रभु आचार्य समान।
इनके त्याग प्रताप में तीर्थंकर भगवान।।

वाणी श्री आचार्य की अद्भुत हैं उद्गार।
हम सबका करवा दिया निज से साक्षात्कार।।

देह-विदेह के मर्म को प्रभु ने दिया बताय।
अन्तर्मन में शान्ति का दीपक दिया जलाय।।

जीव-जन्तुओं पर दया आत्मा नहीं अनेक।
छोटी-बडी ना गीली-सूखी आत्मध्यान कर देख।।

मन-काया और वचन से उत्तम हो व्यवहार।
सोच नहीं निकृष्ट हो ना संकीर्ण विचार।।

क्षमा-दया-तप-त्याग ही जीवन का आधार।
जिनवाणी मां कह रही सम्यक हो आचार।।

ध्यान योग ही कर्म है निज का हो आभास।
तन-आत्मा में फर्क ही उत्तम व्यक्ति विकास।।

भोग-विलासी वृत्ति ही बाधक है तू भाग।
महावीर की साधना मौन- ध्यान तू साध।।

धन्यवाद आचार्य को साध्वी-मुनि आराध्य।
कृपा आप सब की रही लिख पाया यह काव्य।

श्री नेमनाथ' की प्रेरणा डेविश जी के साथ।
यह प्रेस्टीज समूह भी जोडे दोनों हाथ।।

-डॉ.पुनीत द्विवेदी (स्वरचित)
  7869723847

Tuesday, 3 November 2015

इंदौर स्मार्ट सिटी कैसे बने?

शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलाना नया शहर बनाने जैसा ही है। जिसमें नागरिकों में सिविक सेंस लाना सबसे ज्वलंत और कष्टदायक मुद्दा साबित हो रहा है। आधारभूत व्यवस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन करने को क्या हमारा शहर तैयार है? यक्ष प्रश्न है।कहीं ऐसा तो नहीं कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को कागजी दस्तावेज बनाकर इंदौर नगर पालिका निगम काल के गाल में समाहित करने की मंसा रखती हैै। जनप्रतिनिधियों की इस प्रोजेक्ट के प्रति उदासीनता कहीं जनसाधारण तक ना पहुंच जाए और दूध का दूध और पानी का पानी वाली स्थिति उपजे, इसका भी भय हैै।

… इनके देश निकाला पर देशवासियों को गर्व होगा।

देश सदा से ही हमें कुछ न कुछ देता रहा है। जिसके एवज में क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति तक दे दी।  आज के परिदृश्य में तथाकथित कुछेक  साहित्यकार देश द्वारा प्रदत्त उन साहित्यिक पुरस्कारों को लौटा रहे हैं जो शायद गलती से उनको मिल गए थे। जिन्हें राष्ट्र द्वारा प्रदत्त उपाधि या पुरस्कारों का सम्मान करना न आ पाया उन साहित्यकारों की रचनाओं या कला में कितना दम  होगा ? बचपन में दो पंक्तियाँ अक्सर सुनने को मिलती थीं -
" जो भरा नहीं है भावों से , जिसमे बहती रसधार नहीं।
  वो ह्रदय नहीं है पत्थर है , जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। 
प्रश्न यह है कि- क्या इन लोगों का स्वदेश के प्रति प्यार नहीं रहा?
क्या ये सभी साहित्यकार देश द्रोही बन चुके हैं ?
पुरस्कार  व  सम्मानों को लौटाते - लौटाते क्या ये धन्य लोग मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड , एल. पी. जी कनेक्शन ,जन्म प्रमाण पत्र, अर्ह शिक्षा की डिग्रियां तथा अपनी नागरिकता भी लौटा देंगे ?
राष्ट्र सर्वोपरि होता है।  राष्ट्र की संप्रभुता के प्रति विद्रोह का उचित दंड इन विद्रोही अपराधियों को मिलाना  चाहिए।
… इनके देश निकाला पर देशवासियों को गर्व होगा।