शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलाना नया शहर बनाने जैसा ही है। जिसमें नागरिकों में सिविक सेंस लाना सबसे ज्वलंत और कष्टदायक मुद्दा साबित हो रहा है। आधारभूत व्यवस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन करने को क्या हमारा शहर तैयार है? यक्ष प्रश्न है।कहीं ऐसा तो नहीं कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को कागजी दस्तावेज बनाकर इंदौर नगर पालिका निगम काल के गाल में समाहित करने की मंसा रखती हैै। जनप्रतिनिधियों की इस प्रोजेक्ट के प्रति उदासीनता कहीं जनसाधारण तक ना पहुंच जाए और दूध का दूध और पानी का पानी वाली स्थिति उपजे, इसका भी भय हैै।
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