Tuesday, 3 November 2015

… इनके देश निकाला पर देशवासियों को गर्व होगा।

देश सदा से ही हमें कुछ न कुछ देता रहा है। जिसके एवज में क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति तक दे दी।  आज के परिदृश्य में तथाकथित कुछेक  साहित्यकार देश द्वारा प्रदत्त उन साहित्यिक पुरस्कारों को लौटा रहे हैं जो शायद गलती से उनको मिल गए थे। जिन्हें राष्ट्र द्वारा प्रदत्त उपाधि या पुरस्कारों का सम्मान करना न आ पाया उन साहित्यकारों की रचनाओं या कला में कितना दम  होगा ? बचपन में दो पंक्तियाँ अक्सर सुनने को मिलती थीं -
" जो भरा नहीं है भावों से , जिसमे बहती रसधार नहीं।
  वो ह्रदय नहीं है पत्थर है , जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। 
प्रश्न यह है कि- क्या इन लोगों का स्वदेश के प्रति प्यार नहीं रहा?
क्या ये सभी साहित्यकार देश द्रोही बन चुके हैं ?
पुरस्कार  व  सम्मानों को लौटाते - लौटाते क्या ये धन्य लोग मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड , एल. पी. जी कनेक्शन ,जन्म प्रमाण पत्र, अर्ह शिक्षा की डिग्रियां तथा अपनी नागरिकता भी लौटा देंगे ?
राष्ट्र सर्वोपरि होता है।  राष्ट्र की संप्रभुता के प्रति विद्रोह का उचित दंड इन विद्रोही अपराधियों को मिलाना  चाहिए।
… इनके देश निकाला पर देशवासियों को गर्व होगा। 

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