मानव जीवन मिलना पूर्व जन्मों के सत्कर्मों का परिणाम है,जैसा कि हम भारतीयों की मान्यता है। मानव जीवन प्राप्त करने के उपरान्त जीवन की विभिन्न अवस्थाओं से होता हुआ मनुष्य परम् गति को प्राप्त करता है। ये विभिन्न अवस्थाएं जीवन के अद्भुत-उत्तम-नैराश्य-कष्ट-क्षोभ-हर्ष आदि भावों के अनुभवों को संयोजित करते अपनी यात्रा पूरी करती है।
जीवन मूल्यों में कमी-बेशी इस दौरान सामान्य व्यवहार माना जा सकता है, क्योंकि
मनुष्य का पूर्ण होना काल्पनिक है। जबतक पूर्णांक की प्राप्ति न हो उक्त यात्रा अपूर्ण मानी जाएगी।
आयु का पूर्णता से कोई संबंध नहीं। एक अधेड महिला या पुरुष की तुलना में एक युवा या युवती अधिक पूर्ण हो सकते हैं। किसी अधिकारी की अपेक्षा एक अदना सा कर्मचारी बौद्धिक स्तर पर उसे मात दे सकता है। पूर्णता का पूर्णांक स्तर पूर्णरूपेण बौद्धिक परिपक्वता पर निर्भर करता है। बौद्धिक परिपक्वता का होना तथा बौद्धिक स्तर पर परिपक्व दिखना इन दोनों में जमीन आसमान का अन्तर होता है। जो मनुष्य,मनुष्य से प्रेम नहीं कर सकता वह प्रकृति की बनाई किसी भी चीज (पेड,पौधे,पशु,पक्षी) से प्रेम नहीं कर सकता।
बढती उम्र के साथ हम परिपक्व दिखना चाहते हैं ,परन्तु होते नहीं।बडा होकर भी हम बच्चा बनना चाहते हैं ,परन्तु संभव नहीं हो पाता। अपने जीवन काल में विभिन्न प्रकार के सामाजिक, व्यावसायिक दायित्वों में बंधा अपूर्ण मनुष्य अपनी सुविधानुसार विभिन्न काल एवं परिस्थितियों के प्रभाववश विभिन्न रूपों में स्वयं को ढालकर या डालकर अपने ढोंगी ,बहुरूपिए स्वभाव को एक पहचान दिलाने के प्रयास में पूर्णांक की प्राप्ति से वंचित रह जाता है।
आइए ! 'पूर्णांक' की ओर चलें।
(लेखक के विचार स्वयं के जीवन के विशेष क्षणों में उपजे विचार हैं)
मानव जीवन मिलना पूर्व जन्मों के सत्कर्मों का परिणाम है,जैसा कि हम भारतीयों की मान्यता है। मानव जीवन प्राप्त करने के उपरान्त जीवन की विभिन्न अवस्थाओं से होता हुआ मनुष्य परम् गति को प्राप्त करता है। ये विभिन्न अवस्थाएं जीवन के अद्भुत-उत्तम-नैराश्य-कष्ट-क्षोभ-हर्ष आदि भावों के अनुभवों को संयोजित करते अपनी यात्रा पूरी करती है।
ReplyDeleteजीवन मूल्यों में कमी-बेशी इस दौरान सामान्य व्यवहार माना जा सकता है, क्योंकि
मनुष्य का पूर्ण होना काल्पनिक है। जबतक पूर्णांक की प्राप्ति न हो उक्त यात्रा अपूर्ण मानी जाएगी।
आयु का पूर्णता से कोई संबंध नहीं। एक अधेड महिला या पुरुष की तुलना में एक युवा या युवती अधिक पूर्ण हो सकते हैं। किसी अधिकारी की अपेक्षा एक अदना सा कर्मचारी बौद्धिक स्तर पर उसे मात दे सकता है। पूर्णता का पूर्णांक स्तर पूर्णरूपेण बौद्धिक परिपक्वता पर निर्भर करता है। बौद्धिक परिपक्वता का होना तथा बौद्धिक स्तर पर परिपक्व दिखना इन दोनों में जमीन आसमान का अन्तर होता है। जो मनुष्य,मनुष्य से प्रेम नहीं कर सकता वह प्रकृति की बनाई किसी भी चीज (पेड,पौधे,पशु,पक्षी) से प्रेम नहीं कर सकता।
बढती उम्र के साथ हम परिपक्व दिखना चाहते हैं ,परन्तु होते नहीं।बडा होकर भी हम बच्चा बनना चाहते हैं ,परन्तु संभव नहीं हो पाता। अपने जीवन काल में विभिन्न प्रकार के सामाजिक, व्यावसायिक दायित्वों में बंधा अपूर्ण मनुष्य अपनी सुविधानुसार विभिन्न काल एवं परिस्थितियों के प्रभाववश विभिन्न रूपों में स्वयं को ढालकर या डालकर अपने ढोंगी ,बहुरूपिए स्वभाव को एक पहचान दिलाने के प्रयास में पूर्णांक की प्राप्ति से वंचित रह जाता है।
आइए ! 'पूर्णांक' की ओर चलें।
(लेखक के विचार स्वयं के जीवन के विशेष क्षणों में उपजे विचार हैं )
-डॉ.पुनीत कुमार द्विवेदी
07869723847
www.punitkumardwivedi.com
Sr I enjoyed reading it
DeleteWaiting for your article
धन्यवाद।
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