स्वच्छता किसे पसंद नहीं है? यहॉ तक कि एक आवारा कुत्ता बैठने से पहले पूँछ से अपने बैठने वाले स्थान को साफ़ करता है, तब बैठता है। हम तो मनुष्य हैं। हमें अपना परिवेश स्वच्छ रखना है इसका कर्तव्य बोध क्या मोदी जी हमें कराएँगे , तभी हम करेंगे। क्या हम भूल गए जब हम सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते थे तो प्रार्थना के बाद स्वच्छता के लिए प्रतिदिन सामूहिक श्रमदान किया करते थे। जिस प्रथा को बाद में कॉन्वेन्ट शिक्षा ने ग़ायब ही कर दिया। वह शिक्षा जो हमें हमारे संस्कारों से दूर करती है उसमें हमने अपने बच्चों का एडमिशन दिला कर स्वयं को धन्य कर लिया। परिणाम यह हुआ कि अपने मूल संस्कारों से दूर होकर धीरे-धीरे हमारे पुत्र-पुत्रियॉ भी हमसे दूर हो गए। और आज हम वृद्धाश्रमों में अपने उन मित्रों के साथ मस्त हैं जो बचपन में हमारे साथ स्कूल में स्वच्छता हित श्रमदान किया करते थे। किसी भी देश को या समाज को तोड़ने के लिए उसे पहले स्वयं की सभ्यता संस्कृति से दूर करना कारगर हथियार है। मोदी जी चाहते हैं कि हम वापस अपने परिवेश, अपने देश की ओर बढ़ें । हम यह माने और जानें कि यह अपना देश-परिवेश है । इसे सम्भालना, सजाना, सँवारना हमारी ज़िम्मेदारी है । हम सबकी बराबर ज़िम्मेदारी । तो ध्यान रहे- गीला कचरा अलग, सूखा कचरा अलग। आस-पास का परिवेश साफ़ -सुथरा हो। खुले में शौच का विरोध करें। स्वच्छ और स्वस्थ भारत के स्वप्न का साकार करें। देश हमारा अपना है। स्वच्छ भारत का इरादा कर लिया हमने......।।
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