Sunday, 22 January 2017

आरक्षण और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बनाम मीडिया

मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बहुत क़रीब से जानता हूँ। मेरी व्यक्तिगत टिप्पणी से मेरा प्रयास किसी को कष्ट या पीड़ा पहुँचाने का नहीं है।" संघ जीवन संत जीवन है"। राष्ट्र निर्माण के लिए वर्षों से स्वयं की सुख सुविधाओं का त्याग कर देने वाले प्रचारकों के प्रति मेरी कोई सहानुभूति नहीं है क्योंकि जो काम देश के सैनिक सीमा पर कर रहे हैं कुछ ऐसा ही कार्य संघ देश के भीतर और विदेश में भी कर रहा है, मुझे गर्व है।
अपने विभिन्न अनुषंगी संगठनों के माध्यम से युवा विकास, व्यक्तित्व विकास, व्यवस्था विकास, सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक उत्थान, शिक्षा उत्थान तथा जनजातीय कल्याण आदि में अपनी महती भूमिका निभाने वाला संगठन देश की नब्ज़ को शाखाओं के माध्यम से पहचानता है। जाति-पात के भेदभाव से परे उठकर यह संगठन प्राणी मात्र के कल्याण के लिए कृतसंकल्पित है।
आरक्षण पर संघ का विचार सदा से स्पष्ट रहा है। सामाजिक समरसता के माध्यम से बाबा साहेब के स्वप्न को साकार करने के लिए संघ पुरज़ोर प्रयास कर रहा है और परिवर्तन दिखना प्रारंभ भी हो गया है। वसुधैव कुटुम्बकम के मंत्र के साथ पिछड़े वंचित जनों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाला, उन्हें समाज में समानता का दर्जा दिलाने के लिए सदा से प्रयासरत संगठन, संघ है।
संघ कहता है, सामाजिक समरसता ही भारतीयता का मूलमंत्र है। भारतीय संस्कृति के संवर्द्धन एवं संरक्षण के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग का समान योगदान नितांत आवश्यक है। संघ को आरक्षण विरोधी कहने वालों से आग्रह है कि संघ के सामाजिक समरसता, जनजातीय कल्याण आदि प्रकल्पों का अध्ययन करें तत्पश्चात कोई प्रतिक्रिया दें।

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