Saturday, 28 January 2017

विकास नहीं जातिवाद की राजनीति ?

कुछ ऐसे कारक हैं जो किसी भी राज्य/ प्रदेश के विकास के मार्ग में बाधा बनते हैं उनमें से सबसे प्रमुख कारक जातिवाद है। टिकट के बँटवारे से लेकर मतदान के दिन तक ये ब्रह्मास्त्र के रूप में उपयोग में लाए जाने वाला अस्त्र  भोली-भाली जनता को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा करने हित प्रयोग में लाया जाता है। जातिगत राजनीति के लिए ही  कुछ विशेष दलों को जाना जाता है। टिकट वे बँटवारे के समय भाई भतीजावाद, जातिवाद आदि आधारों पर लॉबिंग करना राजनीति में प्रथा सी बन गई है। जनता सदा से गुमराह होने को तैयार है।

विकास की बयार चलाने वाली सरकार के लिए भी ये कारक संकट बन रहे है। राजनीति में दशकों से परोसी जानी वाली चीज़ें अचानक हट जाएँ यह ना तो  पार्टियॉं पचा पा रही हैं और ना ही मतदाता। नोटबंदी का असर चुनावी समर में प्रत्यक्ष दीख रहा है। धनबल वाले दल अब दलदल में फँसे प्रतीत हो रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ़ बाहुबल रूपये की कमी के कारण दुर्बल होता जा रहा है। क्या सच में ऐसा हो रहा है? क्या मेरा देश बदल रहा है?

नशे में धुत् उड़ता पंजाब हो या बाहुबली उत्तर प्रदेश परिवर्तन की यह बयार सर्वत्र अपनी छाप छोड़ती जा रही है। नागरिक सहभागिता के द्वारा शहरों का सुन्दरीकरण "स्मार्ट सिटी" मॉडल, डिजीटल इंडिया, जनधन खाता तथा महत्त्वाकॉक्षी "स्वच्छ भारत अभियान" जैसी योजनाओं ने जनता को केन्द्र सरकार से जोड़ने का काम किया है। विकास के इन  नए आयामों ने जनता में आशा की एक किरण को प्रज्ज्वलित किया है। विकास की इस बयार में भाजपा शासित  राज्य सरकारें केन्द्र सरकार के साथ क़दमों से क़दम मिलाए सुन्दरता, स्वच्छता और विकास के पथ पर अग्रसर हो प्रदेश और देश का गौरव बढ़ा रही हैं। आईए, विकास की राजनीति करें जातिवाद की नहीं। सुन्दर भारतवर्ष बनाएँ। #उत्तर_देगा_उत्तर_प्रदेश।




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