Tuesday, 31 January 2017

कुछ करें या न करें लेकिन मतदान अवश्य करें।

मित्रों, मतदान में वह शक्ति जो कि राजनीतिक पर्यावरण में आमूलचूल परिवर्तन कर राष्ट्र निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शायद हमें इसका अनुभव होगा कि यदि कभी किसी बार हमने मतदान नहीं किया और एक अयोग्य व्यक्ति पदासीन हो गया । जिसका हमें बाद में बड़ा ही क्षोभ रहता है। ध्यान रहे, अयोग्य का पदासीन होना और हमारा मतदान नहीं करना दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दोषपूर्ण व्यवस्था से हम विगत कई दशकों से जूझ रहे होते हैं और सोचते हैं कि मतदान करने से कोई फ़ायदा नहीं। अत: अब मतदान करने से कोई मतलब नहीं। और हम मतदान करना छोड़ देते हैं। परिणाम स्वरूप पुन: वह तथाकथित अयोग्य पदासीन हो जाता है। 

होना ये चाहिए कि यदि हम नेतृत्व से प्रभावित नहीं हैं । कारण यह है कि- व्यवस्थाएँ उत्कृष्ट नहीं हों पा रही हैं। शासन- प्रशासन अप्रभावी है। पुलिस व्यवस्था चरमरा गई है। लूट-अत्याचार, घोटाले आदि  अपने चरम पर हैं। तो हमें नेतृत्व को बदल देना चाहिए। मतदान में वह शक्ति है जो कि समय-समय पर बदलाव को ला सकती है। विकास के पक्षधर सभी मतदान का समर्थन करते है। जितनी अधिक नागरिक सहभागिता होगी उतने ही उत्तम चुनाव के परिणाम होंगे। मतदान हमारा अधिकार है। वर्तमान सरकार का अप्रभावी होना बदलाव की ओर इशारा करता है। 

अप्रभावी, अयोग्य सरकार को बदल कर प्रभावी सरकार की स्थापना करना ही एक समझदार मतदाता और नागरिक का कर्तव्य है। आईए, प्रदेश कोई भी हो अपने मतदान अधिकार का प्रयोग आगामी चुनावों में कर राष्ट्र निर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान दें। स्वस्थ, पूर्ण बहुमत वाली निर्णायक सरकार का गठन करें और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करें। राष्ट्रहित में वोट अवश्य दें। मतदान अवश्य करें।

डॉ० पुनीत कुमार द्विवेदी
मो० 7869723847




Monday, 30 January 2017

चुनावी खेल: कौन पास कौन फ़ेल ?

चुनावी खेल में यदि जनता का भला होता है तो ही राष्ट्र एवं समाज का हित है। हर बार की तरह इस बार फिर मोहरा बनने को न तैयार उत्तर प्रदेश की जनता अब २४ घण्टे बिजली और पानी चाहती है। अत: विकासोन्मुख सरकार बनाना चाहती है। लूट, हत्या, बलात्कार, आतंकवाद, भ्रष्टाचार आदि कुरीतियाँ से दूर होना चाहती है। प्रदेश उत्तम प्रदेश बनने को लालायित है। 

 बुद्धिमान जनता वह होती है जिसे सह पता हो कि केन्द्र और राज्य दोनों में मित्र या एक पार्टी की सरकार होना ही प्रदेश के चहुंमुखी विकास के लिए हितकर है। वर्तमान केन्द्र सरकार दूरदर्शी है। आधारभूत व्यवस्थाओं को पूरा करने के लिए कृतसंकल्पित है। अल्प समय में लोकलुभावन प्रभावशाली योजनाओं का संपादन एवं उनके सफल क्रियान्वयन हेतु कटिबद्ध वर्तमान केन्द्र सरकार "अन्त्योदय" का मूल-मंत्र धारण कर समाज कल्याण करने में लगी है।


जन-धन योजना, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत, स्टार्ट अप इंडिया और भ्रष्टाचार उन्मूलन हेतु  Demonetisation आदि योजनाओं ने  देश का कायाकल्प करना प्रारंभ किया है और परिणाम दीखने लगे हैं। जनता इन योजनाओं का फ़ायदा उठा सक पा रही है और सरकार ठीक तरीक़े से इन योजनाओं का प्रचार- प्रसार जन-जन तक कर सक पा रही है। 

देश के अन्य भाजपा शासित राज्यों की विकास दर तेज़ी से बढ़ी है। उत्तर प्रदेश की जनता से अपील है कि इस परिवर्तन की बयार के साथ सत्ता परिवर्तन का बीड़ा उठाएँ । एक ऐसी सरकार बनाएँ जो कि किसानों के हितों से लेकर युवाओं के रोज़गार, महिलाओं की सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पिछड़े वर्गों के हितों की रक्षा एवं प्रदेश के विकास के लिए कटिबद्ध रहे। इस चुनावी खेल में जनता को हर हाल में पास होना पड़ेगा । हमें इससे कोई मतलब नहीं कि जनता के अलावा और कौन पास होता है अथवा फ़ेल।
#UttarDegaUttarPradesh #Vote4BJP

-डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी
       7869723847

Saturday, 28 January 2017

विकास नहीं जातिवाद की राजनीति ?

कुछ ऐसे कारक हैं जो किसी भी राज्य/ प्रदेश के विकास के मार्ग में बाधा बनते हैं उनमें से सबसे प्रमुख कारक जातिवाद है। टिकट के बँटवारे से लेकर मतदान के दिन तक ये ब्रह्मास्त्र के रूप में उपयोग में लाए जाने वाला अस्त्र  भोली-भाली जनता को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा करने हित प्रयोग में लाया जाता है। जातिगत राजनीति के लिए ही  कुछ विशेष दलों को जाना जाता है। टिकट वे बँटवारे के समय भाई भतीजावाद, जातिवाद आदि आधारों पर लॉबिंग करना राजनीति में प्रथा सी बन गई है। जनता सदा से गुमराह होने को तैयार है।

विकास की बयार चलाने वाली सरकार के लिए भी ये कारक संकट बन रहे है। राजनीति में दशकों से परोसी जानी वाली चीज़ें अचानक हट जाएँ यह ना तो  पार्टियॉं पचा पा रही हैं और ना ही मतदाता। नोटबंदी का असर चुनावी समर में प्रत्यक्ष दीख रहा है। धनबल वाले दल अब दलदल में फँसे प्रतीत हो रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ़ बाहुबल रूपये की कमी के कारण दुर्बल होता जा रहा है। क्या सच में ऐसा हो रहा है? क्या मेरा देश बदल रहा है?

नशे में धुत् उड़ता पंजाब हो या बाहुबली उत्तर प्रदेश परिवर्तन की यह बयार सर्वत्र अपनी छाप छोड़ती जा रही है। नागरिक सहभागिता के द्वारा शहरों का सुन्दरीकरण "स्मार्ट सिटी" मॉडल, डिजीटल इंडिया, जनधन खाता तथा महत्त्वाकॉक्षी "स्वच्छ भारत अभियान" जैसी योजनाओं ने जनता को केन्द्र सरकार से जोड़ने का काम किया है। विकास के इन  नए आयामों ने जनता में आशा की एक किरण को प्रज्ज्वलित किया है। विकास की इस बयार में भाजपा शासित  राज्य सरकारें केन्द्र सरकार के साथ क़दमों से क़दम मिलाए सुन्दरता, स्वच्छता और विकास के पथ पर अग्रसर हो प्रदेश और देश का गौरव बढ़ा रही हैं। आईए, विकास की राजनीति करें जातिवाद की नहीं। सुन्दर भारतवर्ष बनाएँ। #उत्तर_देगा_उत्तर_प्रदेश।




Friday, 27 January 2017

कविता: जय हिंद की सेना

सेना पर मुझको गर्व अटल।
नेतृत्व प्रखर बलशाली है।
भारत मॉ पर उठने वाली
तर्जनी काट दो, गाली है।

आतंकवाद का मज़हब क्या?
इस क्षण सबको बतला देना।
दहशतगर्दों के घर घुसकर,
गर्दनें काट कर ला देना।

भारत मॉ का सम्मान करें !
अरिमुण्डों के हम हार गढ़ें!
चहुंदिश शान्ति सद्भाव बढ़े!
भारत मॉ की जयकार रहे।


कायर-बर्बर-धोखेबाज़ी का,
मंत्र सदा जपने वालों।
अब अंत तुम्हारा आया है।
जहरीलें सर्पों , विष प्यालों।

भारत की ये सेनाएँ अब,
अस्तित्व मिटा देंगी तेरा।
आतंक मिटा देंगी तेरा।
सर्वस्व मिटा देंगी तेरा।

भारत भूमि यह शक्तिमान!
हमको हमपर पूरा अभिमान!
नापाक इरादे वालों का,
मिट जाएगा नामो निशान!!

(डॉ. पुनीत द्विवेदी "क्रान्तिकारी" द्वारा रचित तथा भारतवर्ष की सेना को समर्पित-)


राष्ट्रहित में राजनीति हो।

बदलता राजनीतिक  परिदृश्य यह विचार करने को बाध्य कर रहा हैं कि वास्तव में क्या उचित है? राजनीतिक लाभ के लिए देश को दॉव पर लगाना अथवा देशहित में राजनीति कर परम् वैभव को प्राप्त करना। धर्म- संकट तब आता है जब राष्ट्रीय हित पर  व्यक्तिगत स्वार्थ  भारी पड़ जाता है। राष्ट्र की विडंबना है कि लोकतंत्र का मॉडल विवादास्पद लगता है। बाहुबल तथा अन्य कुप्रभाओं के चलते राजनीतिक समीकरण बदल दिए जातें हैं बिना इसकी कोई चिंता किए कि  राष्ट्रहित में क्या अत्यावश्यक है। चुनाव के समय जनता को लुभाने, लालच देने का अनैतिक प्रयास प्रारंभ हो जाना नैचुरल हो गया है। मतदाता भी स्वयं के स्वाभिमान को दॉव पर लगा देने को तत्पर दिखते है। निश्चित ही नोटबंदी का निर्णय  इस कुप्रथा पर कुठाराघात करेगी और चुनाव नीतिगत तरीक़े से सम्पन्न होंगे।

"ये पब्लिक है सब जानती है" यह  तथ्य इस चुनाव में  " इति सिद्धम" हो जाएगा, ऐसी बयार चल रही है। पब्लिक ये भी जानती है कि भारत भाग्य विधाता कौन है?  विगत  ६०-६५ वर्षों से भारत वर्ष अपने लोगों द्वारा निर्मित जटिल बंधनों में बँधा उन्मुक्त होने को  तरस रहा है। सामाजिक  एवं आर्थिक स्वतंत्रता के स्तर पर भारत सदा से उपेक्षित रहा है। अब समय आया है कि राष्ट्र की गुडविल (साख) बढ़ाई जाए। देश की साख बढ़ने से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश भारत की ओर आकर्षित होगा। विकास का चक्र तेज़ी से चलेगा। रोज़गार के नए अवसर सृजित होंगे। जीवन स्तर सुधरेगा। पुन: विश्वगुरु भारत की स्थापना हो सक पाएगी।

अत: राजनीति राष्ट्रहित के लिए आवश्यक है। राष्ट्रहित से ही  समाज अथवा व्यक्तिगत हित संभव है। आर्थिक दूरदृष्टि तथा कूटनीति वे पहलू हैं जो वैश्विक समुदाय को विश्वगुरु भारत के समक्ष नतमस्तक कर सकते हैं। आवश्यकता है राष्ट्रहित में विशुद्ध राजनीति की। निश्चित ही अच्छे दिन आएँगें।

Sunday, 22 January 2017

आरक्षण और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बनाम मीडिया

मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बहुत क़रीब से जानता हूँ। मेरी व्यक्तिगत टिप्पणी से मेरा प्रयास किसी को कष्ट या पीड़ा पहुँचाने का नहीं है।" संघ जीवन संत जीवन है"। राष्ट्र निर्माण के लिए वर्षों से स्वयं की सुख सुविधाओं का त्याग कर देने वाले प्रचारकों के प्रति मेरी कोई सहानुभूति नहीं है क्योंकि जो काम देश के सैनिक सीमा पर कर रहे हैं कुछ ऐसा ही कार्य संघ देश के भीतर और विदेश में भी कर रहा है, मुझे गर्व है।
अपने विभिन्न अनुषंगी संगठनों के माध्यम से युवा विकास, व्यक्तित्व विकास, व्यवस्था विकास, सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक उत्थान, शिक्षा उत्थान तथा जनजातीय कल्याण आदि में अपनी महती भूमिका निभाने वाला संगठन देश की नब्ज़ को शाखाओं के माध्यम से पहचानता है। जाति-पात के भेदभाव से परे उठकर यह संगठन प्राणी मात्र के कल्याण के लिए कृतसंकल्पित है।
आरक्षण पर संघ का विचार सदा से स्पष्ट रहा है। सामाजिक समरसता के माध्यम से बाबा साहेब के स्वप्न को साकार करने के लिए संघ पुरज़ोर प्रयास कर रहा है और परिवर्तन दिखना प्रारंभ भी हो गया है। वसुधैव कुटुम्बकम के मंत्र के साथ पिछड़े वंचित जनों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाला, उन्हें समाज में समानता का दर्जा दिलाने के लिए सदा से प्रयासरत संगठन, संघ है।
संघ कहता है, सामाजिक समरसता ही भारतीयता का मूलमंत्र है। भारतीय संस्कृति के संवर्द्धन एवं संरक्षण के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग का समान योगदान नितांत आवश्यक है। संघ को आरक्षण विरोधी कहने वालों से आग्रह है कि संघ के सामाजिक समरसता, जनजातीय कल्याण आदि प्रकल्पों का अध्ययन करें तत्पश्चात कोई प्रतिक्रिया दें।

Friday, 20 January 2017

Demonetisation: कितना सही कितना ग़लत

तीस से चालीस वर्षों के अंतराल पर यह तीसरी बार विमुद्रीकरण की रणनीति भारत ने अपनाई है। भारत की सीमा पर सर्जिकल स्ट्राईक करने के निर्णय के पश्चात् अंदर से खोखला हो चुकी अर्थव्यवस्था को सुधारने का प्रयास है यह आर्थिक सर्जिकल स्ट्राईक। ५००-१००० के नक़ली नोटों के बढ़ते चलन ने आतंकवादी गतिविधियों को प्रायोजित करने का काम शुरु कर दिया था। सीमा पार से बढ़ते आतंकवाद को कम करने के लिए हमारे द्वारा उठाया गया यह सर्वोत्तम क़दम था।  विमुद्रीकरण की रणनीति यह कहती है कि राष्ट्र के बचाने का एक महत्त्वपूर्ण क़दम है कि सीमा पार और सीमा के अंदर पल रहे आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार को समाप्त कर राष्ट्र को सशक्त किया जाए। विश्व व्यापार को बढ़ावा देने के लिए, एक पाक-साफ़ विश्व पटल पर प्रस्तुत करने के लिए यह विनुद्रीकरण की रणनीति नितांत आवश्यक थी।

स्वच्छ भारत का इरादा.....कर लिया क्या?

स्वच्छता किसे पसंद नहीं है? यहॉ तक कि एक आवारा  कुत्ता बैठने से पहले पूँछ से अपने बैठने वाले  स्थान को साफ़ करता है, तब बैठता है। हम तो मनुष्य हैं। हमें अपना परिवेश स्वच्छ रखना है इसका कर्तव्य बोध क्या मोदी जी हमें कराएँगे , तभी हम करेंगे। क्या हम भूल गए जब हम सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते थे तो प्रार्थना के बाद स्वच्छता के लिए प्रतिदिन सामूहिक श्रमदान किया करते थे। जिस प्रथा को बाद में कॉन्वेन्ट शिक्षा ने ग़ायब ही कर दिया। वह शिक्षा जो हमें हमारे संस्कारों से दूर करती है उसमें हमने अपने बच्चों का एडमिशन दिला कर स्वयं को धन्य कर लिया। परिणाम यह हुआ कि अपने मूल संस्कारों से दूर होकर धीरे-धीरे हमारे पुत्र-पुत्रियॉ भी हमसे दूर हो गए। और आज हम वृद्धाश्रमों में अपने उन मित्रों के साथ मस्त हैं जो बचपन में हमारे साथ स्कूल में स्वच्छता हित श्रमदान किया करते थे। किसी भी देश को या समाज को तोड़ने के लिए उसे पहले स्वयं की सभ्यता संस्कृति से दूर करना कारगर हथियार है।  मोदी जी  चाहते हैं कि हम वापस अपने परिवेश, अपने देश की ओर बढ़ें । हम यह माने और जानें कि यह अपना देश-परिवेश है । इसे सम्भालना, सजाना, सँवारना हमारी ज़िम्मेदारी है । हम सबकी बराबर ज़िम्मेदारी । तो ध्यान रहे- गीला कचरा अलग, सूखा कचरा अलग। आस-पास का परिवेश साफ़ -सुथरा हो। खुले में शौच का विरोध करें। स्वच्छ और स्वस्थ भारत के स्वप्न का साकार करें। देश हमारा अपना है। स्वच्छ भारत का इरादा कर लिया हमने......।।

कौन बड़ा और कौन पड़ा: उत्तर देगा उत्तर प्रदेश

परिवर्तन समय की माँग है। कोई आवश्यक नहीं कि जो हम साठ-पैंसठ साल से कर रहे हों आगे भी वही करते रहें या स्वयं को ऐसा करने को बाध्य रखें। अपना उल्लू सीधा करने या राजनीतिक रोटियों सेंकने के लिए राष्ट्र को बलिवेदी पर न्योछावर कर देना कहॉ का देशप्रेम ? उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश बनने को तैयार है। लूट-खसोट-बलात्कार आदि अपराधों में उलझा राज्य विकास की बाट देख रहा है। परिवर्तन की बहती बयार ने उन भ्रष्टाचारियों के कान खड़े कर दिए हैं जो दशकों से उत्तर प्रदेश की अस्मिता को लूटते रहे हैं। सपा हो या  बसपा,  उत्तर प्रदेश के हित में किसी ने काम नहीं किया। सपा परिवार ने  स्वंय के स्वार्थ के लिए प्रदेश में गुन्डाराज की स्थापना कर डाली। भ्रष्टाचारी बहन जी ने बहुत लूट मार की। भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। राष्ट्रनायक अब पैदा हो चुका है । भगवान काशी विश्वनाथ का प्रसाद उत्तर प्रदेश को नयी ऊँचाइयों पर ले जाएगा और इसे उत्तम प्रदेश वनाएगा।
#उत्तर_देगा_उत्तर_प्रदेश